शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

पाटलिपुत्र के सच्चे वारिश

बिहार का गौरवशाली अतीत है | और इस गौरवशाली अतीत को हमरे राजनेता अपने अपने ढंग से आगे बढ़ाते रहते हैं | चाहेंगे भी क्यों नहीं आखिर जनता कि नजर में उसके संच्चे वारिश जो हैं | बिहार के संसदीय इतिहास में २०१० का मानसून सत्र गौरव के साथ लिया जायेगा क्योंकि इस महान दिन को माननीय सदस्यों ने मर्यादा कि नई परिभाषा गढ़ दी | विधान सभा युद्ध का अखाडा बन गयी माननीय सदस्यों ने जमकर नूरा- कुस्ती की | एक -दुसरे से ऐसे गले मिले कि किसी की बांह मुड गयी तो किसी को पांव में मोच आ गयी | उन्होंने स्वीकारा कि वे सदन के पटल पर लातम- जूतम से लेकर वे सब कुछ किये जो संसदीय आचरण के दायरे में आता है | उन्होनो यह भी कहा कि वे गमले एवं माइक आत्मरक्षा के लिए उठाये थे | शुक्र है कि उनके हांथो में बन्दुक नहीं थी वरना आत्मरक्षा के लिए बन्दूक भी उठ जाती | तब शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए मार्शल नहीं कमांडो बुलाने पड़ते |जब एक संवाददाता ने उनसे पूछा कि आपलोग तो अहिंसा के पुजारी हैं | यह सब आचानक कैसे हो गया तो उन्हों कहा कि वैसे तोशालीनता हमलोग उतारते नहीं | लेकिन हम लोग अन्याय भी तो नहीं देख सकते | उन्हों अपने कार्य को सही साबित करने के लिए सामूहिक काव्य पाठ भी किया | जैसे अधिकार खोकर बैठ रहना यह बड़ा अन्याय है न्यायार्थी अपने बंधुओं को दंड देना धर्मं है आदि | उन्हों ने आगे कहा कि वे जब घोटाला शब्द जीवन में पहलीबार सुने तो अपने आपको तोड़फोड़ करने से नहीं रोक पाए | उन्होनो ने यह भी कहा कि जिनके जीवन में कभी कलंक का छीटा न पड़ा हो वो अन्याय को देखकर तो आंदोलित हो ही जायेंगे न | क्रोध में मान- मर्यादा का किसे ख्याल रहता है | जो उन्हें ख्याल रहेगा | पत्रकारों से माननीय सदस्यों ने यह भी कहा कि बिहार के नाम को वे दिक्- दिगंत में गुंजायमान करने के लिए अपना सबकुछ त्याग कर देंगे | भविष्य में भी वे ऐसा करते रहेंगे | उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि बिहार केवल आर्थिक तरक्की तक हीं सीमीत न रहे | बल्कि ऐसे क्षेत्र को भी चूने जो लोग करने से परहेज करते हों | उन्होंने संसदीय आचरण के ऐसे ऐसे आदर्श गढ़े जाने कि वकालत की जो कि दुसरे के लिए आदर्श बने | उन्हों ने यह भी कहा कि अगर हम लोगों ने कोई सूचना छुपायी भी हो तो बालक समझ कर उन्हें माफ कर दिया जाये |

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