शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

चुनाव आयो रे

बिहार में चुनाव होने जा रहा है | यानि लोगों की व्यस्तता बढनेवाली है| कुछ दिन लोगों को अपने दुःख दर्द को भूलने का मौका मिलने वाला है | और लोगों में नेताओं के आश्वासनों से अच्छे भविष्य की आस जगनेवाली है| आखिर आम आदमी आश्वासनों के भरोसे ही तो जीवन गुजार रहा है और नेता लोग कुर्सी के सहारे | चुनाव के चलते लोगों के जीवन में नया उत्साह देखने को मिल रहा है| दरअसल पैसे के आभाव में लोग एक जैसे स्थिति में रहने से जीवन से उकता सा गए थे | कुछ बदलाव की दरकार थी जो अब मिल गयी है| पार्टियाँ उन्हें पैसा खुल कर बाँट रही हैं | और मुफ्त की सैर करा रही है नाश्ते पानी का टीए डीए भी दे रही है | इससे पहले एकदूसरे से लड़- झगड़ कर हीं वे लोग अपना मनोरंजन किया करते थे| बेरोजगारों की फौज चुनाव के आगमन से खासी उत्साहित है , आखिर हो भी क्यों न पोस्टर बांटने एवं चिपकाने का उन्हें रोजगार जो मिल गया है| बड़े-बूढ़े खुश हैं की चुनाव के समय हीं सही कोई उनका कुशलक्षेम तो पूछ रहा है |वरना बेटे एवं बहू तो सीधी मुंह बात करना ही छोड़ दिए थे| वो तो नेता जी की उदारता जो ठहरी जो पांच साल बाद बड़े-बूढों की खबर ले रहे हैं | वरना इस ज़माने में कौन किसको पूछता है | विश्वाश नहीं तो बागवान देख लीजिये| कैसे मां बाप बेटों के घर से दुत्कारे जाते हैं | चुनाव के समय में बाल -वृद्ध गरीब -अमीर की खाई पट जाती है | | नेता सभी को एक घाट पर पानी पिलाने लगते है | चुनाव समतामूलक समाज के निर्माण में पांचसाल में हीं सही एकबार प्रयास जरुर करता है| बाकि के समय में बच्चे लोग ताली बजा सकते है, बूढ़े झक मार सकते हैं लफुए लाफुआगिरी कर सकते हैं| और नेताजी पटना में बैठकर मलाई खा सकते हैं|

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