बुधवार, 14 दिसंबर 2011

लगे रहो मुन्नाभाई ।
वैसे तो कौन नहीं अपने आपको को ज्ञानी कहलाना चाहेगा।  लेकिन ज्ञानी बनना इतना आसान काम नहीं। वास्तविकता यह है कि अधिकांष लोगों को अधिकांष चीजों की सतही जानकारी होती है। उनके अंदर गहरे ज्ञान का अभाव रहता है। जनसंख्या वृद्धि को हीं ले लीजिए। जनसंख्या वृद्वि के फायदे को आखिर कितने लोग जानते है। सभी लोग आपसे यहीं कहते मिलेंगे कि, जनसंख्या वृद्वि रोके बिना गरीबी दूर नहीं हो सकती। अर्थव्यवस्था की सेहत  सुधर नहीं सकती। ऐसा कहने वाले लोगों में मौलिक सोच का अभाव होता है। वे लकीर के फकीर होते हैं। दुर्भाग्यवष जनसंख्या वृद्वि के संदर्भ में न व्यक्ति दूरदर्षिता का परिचय दे रहा है और न राष्ट्र। जबकि दूरदर्षिता के महत्व को हर कोई जानता है।
न जाने क्यों लोग जनसंख्या वृद्वि को रोकने को इतना आतुर दिखते है। अधिक बच्चे पैदा करने को पिछड़ी मानसिकता का परिचायक मानते हैंै। जबकी दूरदर्षी जानते हैं कि आने वाले दिनों में जनसंख्या वृद्वि के लिए लोगों को सरकार की ओर से प्रोत्साहन पैकेज दिया जाएगा। अधिक बच्चा पेदा करने वाले को सम्मानित किया जाएगा। अबतक जनसंख्या वृद्वि रोकने के लिए न जाने कितनी नीतियां बन चुकी है। अरबो-खरबो रूपया जनसंख्या रोकने के नाम पर फूंका जा चुका है। लेकिन नतीजा षुन्य रहा है। आखिर रहेगा क्यों नहीं  प्रकृति विरूद्ध काम का नतीजा तो यहीं  होगा न। लोग यह क्यों नहीं जानते कि विष्व में आने वाली आगामी मंदी जनसंख्या क्षेत्र में हीं होगी। क्योंकि विष्व का अधिकांष देष परिवार नियोजन का पालन कर रहंे हैं। ऐसे में चुपचाप जनसंख्या वृद्वि करने में हीं बुद्विमानी है। जब और देषों में जनसंख्या का अकाल हो जाएगा, तो दूसरे देषों में जाकर यहां के लोग ऐष कर सकते हैं। जिस तरह चांद पर बसने की संभावना है। ठीक उसी प्रकार आने वाले दिनों में भारत के लोगों की दूसरे देष में जाकर बसने की संभावना है। और वहां के सरकार इसके लिए तमाम तरह की रियात देगी। आपके मन में यह प्रष्न उठ रहा होगा कि क्या जनसंख्या वृद्धि को बढ़वा देकर हम अप्रगतिषील नहीं कहाएंगे। आखिर हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। इसपर मेरा कहना है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ेगा हीं न। जीरो रिस्क वाली बात तो किसी भी काम में नहीं होती। हां मैं आपको जरूर यह आष्वस्त कर सकता हूं कि आप घाटे में नहीं रहेंगे। एक दूसरा प्रष्न भी आपके मन में उठ सकता है। क्या दूसरे देषों को मूर्ख बनाना इतना आसान है। तो मेरा कहना है क्यों नहीं जब पाकिस्तान अमेरिका सहित पूरे विष्व को मूर्ख बना सकता है तो भारत क्यों नहीं बना सकता? जैसा कि वह  दिखावे के लिए आतंकवाद के विरूद्व लड़ाई लड़ सकता है और पूरा विष्व उसे मान सकता है। तो भारत क्यों नहीं चुपचाप जनसंख्या वृद्धि कर सकता है।
 दूसरी बात कि अपने देष के  बुद्विजीवियों के आक्रमण से बचने के लिए भी आपको उपाय सोचने होगें। बाहर से देष दिखाए कि वह जनसंख्या वृद्वि रोकने के लिए बहुत सीरियस है। आवष्यकता हो तो इसके लिए सौ-पचास जबर्दस्ती नसबंदी भी करा दे। लेकिन अंदर हीं अदंर लोगों को जनसंख्या बृद्वि के लिए खूब प्रोत्साहित करे। जनसंख्या वृद्वि के कुछ और फायदे है। जैसे
जनसंख्या वृद्धि व्यक्तित्व विकास के लिए जरूरी है। क्योंकि
व्यक्तित्व विकास के लिए समाज का होना जरूरी है। बालक का समाज से परिचय परिवार के रूप में होता है। बालक सामाजिक होना परिवार से सिखता है। अतः परिवार जितना बड़ा होगा व्यक्ति उतना हीं अधिक सामाजिक होगा।

जनसंख्या वृद्धि से व्यक्ति चुनौतियों का सामना करना सिखता है। कई पुत्र होने से परिवार में अगर खाने को नहीं होगी तो मारा -मारी होगी। ऐसा होना बच्चों के मानसिक विकास के लिए बहुत अच्छा होगा। क्योंकि उनके आगे के जीवन में कितना भी अभाव आ जाए वे समस्या का रोना नहीं रोएंगे। वे लड़ झगड़कर दूसरे का हक मारकर अपना हक प्राप्त हीं कर लेंगे।
सुरक्षा के भाव के लिए जनसंख्या वृद्धि जरूरी- अधिक बच्चे माता पिता में सुरक्षा का भाव पैदा करते है। जिसका एक बच्चा होगा उसको हमेषा चिंता रहेगी ,अगर वह उसके बुढ़ापे का सहारा नहीं बनेगा तो क्या होगा। वहीं जिसके कई पुत्र होगें वह यह सोच सकता है कि एक नहीं करेगा। दूसरा तो करेगा न। भले हीं कोई न करे।
बड़ा परिवार सुखी परिवार - अगर आप पड़ोसियों के बीच धाक जमाना चाहते उन्हें अपने सामने झुकाना चाहते हैं। तो क्रिकेट टीम खड़ा कर हीं दीजिए।  आपके बच्चों को देखकर हीं पड़ोसियों को नानी याद आ जाएगी। पड़ासियों को आपके परिवार की ओर आंखें उठाने की हिम्मत नहीं होगी। यानी हर जगह आपकी तुती बोलेगी। तो फिर देर किस बात की लगे रहो मुन्नाभाई ।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

लोकपाल बकवास है

देष अपना है
सरकार अपनी है
नेता अपने हैं
भ्रष्ट्राचार सपना
कोरी कल्पना है
लोकपाल बकवास है
इसे लागू करना
लोकतंत्र का उपहास है
अज्ञानजनित द्वन्द है
हर कोई स्वच्छन्द है।
नेताओं की मौज है
बेरोजगारों की फौज है
पैसा भगवान है।
बिक रहा ईमान है।
कुतों का मान है
गया-गुजरा इनसान है
फलफूल रहा जयचंद्र हैं।
चैहान के लिए दरवाजे सारे बन्द है
इंडिया खूब षायनींग कर रहा है
चन्द लोगों की तिजोरियां भर रहा है
पर भारत कंगाल है।
जनता लाचार है
देष की आत्मा गावों में बसती है मगर
बस वहां भूख का साम्राज्य है।
बिचौलियों का राज्य है।
पाक के साथ षिष्ट्राचार है।
कसाब बना मेहमान है।

चांद कहां निकला वो तो मैंने तेरी घूंघट उठायी है।

बदली नहीं छायी तेरी जुल्फ की परछायीं है।
चांद कहां निकला वो तो मैंने तेरी घूंघट उठायी है।
सरगम की ये धुन नहीं ये तेरी सासों की षहनायी है।
हुआ कहां सबेरा वो तो गोरी मुस्कुरायी है।

यौवन में नहाया हुआ तुम्हारा ये गुलाबी बदन

यौवन में नहाया हुआ तुम्हारा ये गुलाबी बदन
प्यार बरसाता हुआ तुम्हारा ये षराबी नयन
उसपे चले जब वासंती पवन
 फिर सुने कोई जब चुडि़यों की खनक।
क्या काफी नहीं है बताओ तुम्हीं
दिल पे बिजली गिराने के लिए ये सितम।

रविवार, 11 दिसंबर 2011

तेरा रूप देख चांद भी सरमाया होगा

तुमने बालों को जब गालों पे लहराया होगा ।
तेरा रूप देख चांद भी सरमाया होगा
तुम समझती हो कि उसे मैंने उकसाया होगा।
बात मानो उसे देख के नषा छाया होगा।

हास्य कविता

भ्रष्ट्राचार आज आचार बन गया है।
नेताओं का षिष्टाचार बन गया है।
दिन-दुनी रात चैगुनी उन्नति का आधार बन गया है।
जाने क्यों अन्ना इसके खिलाफ हल्ला बोल रहे हैं।
जबकि लाखों बेरोजगारों का यह रोजगार बन गया है।

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

कौन अन्ना को कितना प्यार करता है?

बात पुरानी है लेकिन रोचक कहानी है। जीं हां मैं बात कर रहा हूं अपने दिग्गी राजा के बारे में जो अपने नित नये बयानों से विकिलिक्स को भी पछाड़े रहते हैं। आइए अब हम विड्ढय पर आते हैं।
दिग्गविजय सिंह जी केे कुछ दिन पूर्व दिए बयान से मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि ,वे अन्ना से दिलोजान से प्यार करते हैं। उनके इस कथन पर कोई विष्वास करे या ना करे, मैं षत प्रतिषत करता हूं। मेरा तो यहां तक कहना है कि वे अन्ना से सबसे अधिक प्यार करते हंै। अन्ना स्वयं कह चुके हैं कि दिग्गी राजा उनका पांव छूते थे। यानी सिंह साहब उनका पहले से सम्मान करते रहे हैं। उनका प्यार कोई नया नहीं है। इसके अलावे वे समय-समय पर उनको प्रेम पत्र भी लिखा करते हैं। दिनभर उनकी हीं बारे में बाते किया करते हैं।
अभी यह अस्पष्ट नहीं हो पाया है कि कांगे्रस ने उनको उत्तर प्रदेष का प्रभार दिया है कि अन्ना का प्रभार दिया है। कारण कि अक्सर प्रेस से उनकी हीं बाते किया करते हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि वे अन्ना को ज्यादा प्यार करते हैं कि रामदेवजी को ज्यादा, क्योंकि रामदेवजी के आंदोलन के दौरान  वे केवल रामदेव की बातें किया करते थे। 
 अन्ना से प्यार करने वाले में दूसरा नम्बर कपिलजी का आता है। जिनका प्यार अन्ना के प्रति षाष्वत है , पवित्र है ,क्योंकि वह अन्ना, रामदेव, एवं स्वामी अग्निवेष तीनों पर समान रूप से बरसता है।  सच्चा प्रेम भेद नहीं जानता। उसे सीमा में नहीं बांधा जा सकता। उसे दोस्त और दुष्मन की पहचान नहीं होती। अन्ना को प्यार करने वालों में तीसरा नम्बर मनीष तिवारी का आता है। जो उनके प्यार में इतना भाव-बिभोर हो जाते हैं कि उनको भ्रष्टाचार में आंकठ डूबे हुए बताकर स्तुती करते हैं। तब अति भावुक देखकर कांग्रेस याद दिलाती है कि टू मच हो गयाजी। बस करो अब हजम नहीं होगा। तब जाकर वे सार्वजनिक रूप से खेद जताते हैं और कहते हैं अन्ना एवं उनके समर्थक उन्हें बालक समझकर मांफ कर दें।

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

लोकलाज छोड़ने वालों के पास अवसर हीं अवसर होता है

अवसर की कमी उसके लिए  है जिसकी प्रतिभा औसत दर्जे की है या उससे भी कम है। जिसके पास प्रतिभा का विस्फोट है उसको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। चाहे कितनी बड़ी मंदी क्यों न आ जाए। आप यह कह सकते कि यह कैसे जाना जाए कि किसके पास प्रतिभा का बिस्फोट है। तो मेरा कहना है घोटाले करने वाले और अपहरण करने वाले या कराने वालों के पास प्रतिभा का बिस्फोट होता है।
मंदी से अवसर की कमी हम क्यों मान लें। क्या मंदी के दौरान अपराध में गिरावट आ जाती है। क्या तस्करी रूक जाती है। क्या मानव अंगों का व्यापार नहीं होता है। क्या जाली नोटों का कारोबार रूक जाता है। क्या चोरी- चमारी, छीना -झपटी बैंक डकैति आदि में गिरावट आ जाती है। नहीं न, तो फिर कैसे मान लिया जाए कि मंदी से बेरोजगारी बढ़ जाती है। अर्थ व्यवस्था तबाह हो जाती है। क्या मंदी से अपहरण उद्योग में जान नहीं आ जाती है? हां यह जरूर कर्मचारियों की अदला-बदली जरूर हो जाती है। तस्करी, अपहरण और जाली नोटों के कारोबार वाले उद्योगों में लोगों का विष्वास जरूर बढ़ जाता है। जो लोग नैतिकता की बात करते हैं या ईमान की इजाजत नहीं देने की बात करते हैं। वे भूखों मरते है। ये परिवर्तन को जल्दी नहीं स्वीकार करने वाले लोग होते हैं। ये लोग मल्टीटास्क कतई नहीं होते हैं और बेरोजगार रह जाते हैं। और बेरोजगारी का खूब रोना भी रोते हैं।
 आज के दौर में जब आॅलराउण्डर नहीं बनेंगे तो रोजगार क्या खाक मिलेगा। जब हर जगह मल्टी टाॅस्क की मांग हो। छिनैती जब फायदे का धंधा न रह जाये तो अपहरण उद्योग में षिफ्ट हो गये, उसमें भी अवसर न दिखे तो जाली नोटों का कारोबार करने लगे।
परंपरागत उद्योगों में रोजगार ढ़ूढोगे तो काम कहां मिलने वाला है। कुछ हट करना होगा। इसके लिए आपको संकोच छोड़ना होगा। लोकलाज को तिलांजली देनी होगी। जो इस बात का छोड़ दिया कि, लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे उसको फिर अवसर हीं अवसर है। फिर वह भीख मांग कर भी अपने तथा अपने परिवार का भरण-पोड्ढण कर लेगा। फिर उसे दुनिया कि कोई ताकत आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।
इसी प्रकार मानव अंगों की तस्करी करने वाले को भी कहां कानून का डंडा रोक पाता है। प्रतिष्ठित व्यक्तियों पर जूता चलाने वाले जांबाज भी आखिरकार तमाम बाधाओं एवं विरोध के बीच अपना स्थान हैं। उनकी राह कोई आसान नहीं होती। लोक निंदा जैसे बाधा उन्हें कहां रोक पाती है।
प्रेरक प्रसंग हर जगह मौजूद हैं। आवष्यकता है उसको पहचानने की। घोटाला करने को हीं ले लें। क्या सामान्य मनोदषा वाला व्यक्ति घोटाला कर सकता है। घोटाला को वहीं खराब कहता है, जिसके पास इसे करने की हिम्मत नहीं होती। इसी प्रकार
भ्रष्ट्राचार करने के लिए भी अदम्य साहस एवं दृढं इच्छा षक्ति की आवष्यकता होती है। इसलिए मैं भ्रष्ट्राचारियों को सर्वोच्च सम्मान देने की वकालत करता हूं। सामान्य मानसिक दषा वाले व्यक्ति को घोटाला करने की सोचने मात्र से नानी याद आ जाएगी। हार्ट अटैक हो जायेगा। सीबीआई एवं जेल जाने का भय सताएगा। इसके समर्थन में लफुआ एण्ड कंपनी ने मेरे नेतृत्व में एक रैली भी निकाली है। जिसको संबोधित करते हुए मैंने सरकार से इसे लीगलाइज करने की मांग उठायी है। लफुओं को संबोधित करते हुए मैंने कहा कि भ्रष्ट्राचार सरकार की अर्कमण्यता के चलते आज गैरकानूनी है। परिणामस्वरूप करोड़ो रूपये पानी की तरह जांच के नाम पर बहाना पड़ता है।
मेरे नेतृत्व में एक षिष्टमंडल अन्ना हजारे से भी मिलेगा और उनसे राष्ट्र को गुमराह नहीं करने की अपील करेगा।

पाकिस्तानी क्रिकेटरों ने बाजी मार हीं ली।

बात कुछ दिन पहले की है जब कुछ पाकिस्तानी क्रिकेटरों को सट्टेबाजी के जुर्म में जेल की सजा सुनाई गयी।  इस फैसले से  पाकिस्तान ने पड़ोसी देष पर बढ़त हासिल कर ली।
वैसे तो पाकिस्तान एवं भारत में युद्ध अक्सर होता रहता है। युद्ध के मैदान न सही खेल का मैदान में हीं सही। दोनों ओर के खिलाड़ी जंग जितने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। पिछले कुछ दिनों से पाक क्रिकेट संकट के दौर से गुजर रहा था। कारण कि कोई भी देष  वहां जाकर खेलने को तैयार नहीं था। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को कोई उपाय हीं नहीं सुझ रहा था कि इस विड्ढम परिस्थिति से कैसे निपटा जाए। लेकिन एक अप्रत्यासीत घटना ने  न केवल पाकिस्तानी क्रिकेट का गौरव वापस लौटाया ,बल्कि उसे पड़ोसी देष पर बढ़त भी दिला दी। क्रिकेट के इतिहास में पहली बार जेल जाकर पड़ोसी देष के खिलाडि़यों ने आखिरकार भारत को पछाड़ हीं दिया। बहुत दिनों से उसकी ख्वाहिष थी कि पड़ासी देष उससे मात खाए। लेकिन मौका नहीं मिल रहा था। आखिरकार पाकिस्तानी क्रिकेटरों ने अपने देष के गौरव में चार चांद लगा हीं दिया। उन्हें डर था कि भारत एवं कोई अन्य देष ने अगर बाजी मार लिया तो, उनके देष में उन लोगों की काफी ऐसी-तैषी होगी। हो सकता है कयानी के अदालत में पेष होना पड़े। विष्व क्रिकेट के इतिहास में पहली बार पाकिस्तानी क्रिकेटर जेल का सफर तय करेंगे। इसके पहले पाकिस्तानी क्रिकेटर अपने सरल एवं सौम्य व्यवहार के लिए जाने जाते थे। अपुष्ट खबरों के अनुसार आईएसआईका पाकिस्तानी क्रिकेटरों पर कुछ नई उपलब्धी राष्ट्र के नाम हासिल करने का दबाव था। आएसआई का मानना था कि श्रीलंकाई क्रिकेटरों पर गोलीबारी की घटना काफी पुरानी हो चुकी है। और विष्व कप भी भारत जीत कर ले गया। ऐसे में कोई नई उपलब्धि हासिल करने की एकदम इमरजेंसी थी। सीमा पार से भी पाकिस्तानी सेना सीमापार से भी उतनी धुआंधार गोलीबारी नहीं कर पा रही है। क्योंकि अमेरिका पहले की तरह खामोष नहीं बैठता। ऐेसे में इज्जत बचेगी तो कैसे ? तालिबान को भी पाकिस्तान खुलेआम समर्थन नहीं दे पा रहा था। ऐसे में पाकिस्तान के सामने नाक बचाने का प्रष्न खड़ा हो गया था।
अपुष्ट खबरों के अनुसार राष्ट्रªपति जरदारी ने सेना प्रमुख कयानी के दबाव में पाकिस्तानी क्रिकेटरों को इस उपलब्धि पर बधायी दी है। कहा जा रहा है कि अगर जरदारी ऐसा नहीं करते तो उनका तख्ता पलट होना निष्चित था।

सुख-दुख एक हीं सिक्के के दो पहलू हैं।

मैं घोर भाग्यवादी हूं। मेरा मानना है इनसान के जो भाग्य में होगा वह मिलेगा हीं, चाहे वह हाथ-पर हाथ धरा क्यों न रहे। कहा भी गया है कि जब ईष्वर देता है तो छप्पर फाड़कर देता है। मैं छप्पर फटने का इंतजार कर रहा हूं। लेकिन मेरे इंतजार को ,मेरी पत्नी मेरा आलसीपन मानती है। आखिर क्यों न माने, तुलसी बाबा पहले हीं लिख गये हैं, जाकी रही भावना जैसी, हरी मूरत देखी वह तैसी। मैं भाग्यवादी  होने के साथ गहरे अर्थों में अध्यात्मिक भी हूं। मै ज्ञानीजनों के इस बात से सहमत हैं कि सुख- दुख मिश्रित है, अर्थात सुख के बाद दुख, दुख के बाद सुख। पर मेरी पत्नी मुझे ज्ञानी नहीं मानती। पड़ोसियों की नजर में भी मैं गंवार हूं।  मानेगी भी कैसे, कहा भी गया है, घर की मुर्गी दाल बराबर। जब लोग तुलसीदास की तरह मुझे घर- घर पूजने लगेंगे, तब सबको मेरी महानता मालूम होगी। तब न पत्नी मुझे भाव देगी। तब न पड़ोसी मेरे यहां दरबार लगाएंगे। फिलहाल पत्नी की नजर में मैं आरातलबी हूं, आलसी हूं, निकम्मा हूं, तभी तो मैं  ज्यादा कमाना नहीं चाहता । जबकी मेरा जीवन दर्षन यह है कि यह दुनिया दो दिन का मेला है। इस दो दिन की जींदगी में हाय हाय क्या करना।  मौज मस्ती कर लिया जाए। कौन मकान और घर लेकर इस संसार से जाता है। सिकन्दर भी तो खाली हाथ हीं गया था। मेरे पत्नी को अभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुयी है, कोई बात नहीं हो जाएगी, क्योंकि उसको ज्ञानी पति जो मिला है।  मैं हूं न उसको उपदेष पिलाने को ा  आखिर मेरा ज्ञान किस काम आयेगा। वह ज्ञान किस काम का जो अपने के हीं काम न आए। लेकिन मेरे प्रवचन से परिवार की षांति व्यवस्था को खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। लाठी चार्ज की भी नौबत आ सकती है। लेकिन इससे क्या मुझे उपदेष नहीं देना चाहिए। खतरा किस काम में नहीं ? क्या बिना खतरा उठाये आज की दुनिया में कुछ हो सकता है। मेरे प्रवचन के दौरान बेलन एवं झाड़ू बरसने की प्रबल संभावना है। लेकिन अगर मैं झाड़ू से डर जाऊंगा तो क्या कायर नहीं कहलाऊंगा। उसे समझाना भी तो मेरा फर्ज है। मैं झाड़ू बेलन से डरता नहीं,  क्योंकि मैं सत्याग्रही हूं सत्याग्रह करना जानता हूं। रामलीला मैदान में लाठी डंडा खा चुका हूं। छात्र जीवन में पुलिस वाले के हाथों में पिटा चुका हूं। कोई पहली बार नहीं मेरे साथ यह हादसा होगा। दूसरी बात यह है कि वह नासमझ है कि ,जो पति परमेष्वर पर हाथ उठायेगी, लेकिन मैं तो ज्ञानी हूं न। मैं हाथ नहीं उठाऊंगा। वरना किस मुंह से उससे खुद को बड़ा कहुंगा। उसके और मुझमें फिर अंतर हीं क्या रह जाएगा। मैं उससे उम्र में एवं अनुभव दोनों में बडा हूं।  उसे समझाना मेरा फर्ज है। उसे कर्तव्यबोध कराना जरूरी है। मेरा ज्ञान कह रहा है कि मेरी पत्नी माया के वषीभूत है ,वह ज्यादा धन मुझसे कमवाकर अपने अहंकार का विस्तार करना चाहती है। अपने सहेलियों में प्रभाव जमाना चाहती है। पड़ोसियों को जलाना चाहती है। लेकिन मैं ऐसा होने दूंगा। उसको माया में पड़़ने नहीं दूंगा। आखिर मैं उसका पति हूं उसका हित-अनहित सोंचना मेरा कर्तव्य है।  अगर मैं नहीं सोचूंगा तो आखिर दुनिया क्या कहेगी। न मैं ज्यादा कमाऊंगा और न उसे किसी चीज का अहंकार होगा। न वह पड़ोसियों का जलायेगी। वह नहीं पढ़ी है तो क्या। मैं तो पढ़ा-लिखा हूं न। मैं यह पढ़ा हूं कि  साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाय मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाय। आखिर मैने उससे जनम- जनम साथ निभाने का वादा किया है। उसके प्रति भी तो मेरा कुछ कर्तव्य बनता है।
उसे यह नहीं पता है कि दुख के बाद सुख का अहसास होता है। वह केवल सुख हीं सुख चाहती है ,अगर मैं केवल उसे सुख के हीं वातावरण में रख दूं तो क्या वह उब नहीं जाएगी।  फिर उसे असली सुख का अहसास कैसे होगा। वह चाहती है कि मैं कुछ कमाकर बाल- बच्चों के लिए रखूं। सब तो रख हीं रहे हैं। मैं क्यों माया में पड़ूं। क्यों न मैं कुछ अलग करूं। मेरी बचपन से इच्छा कुछ अलग करने की रही है। सो मैं कुछ अलग कर रहा हूं। अपने बच्चों को कुछ कमाकर नहीं रख रहा हूं। और घर का माल उड़ा रहा हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चेे स्वयं स्वालंबी बने। अगर सब मैं हीं कर दूंगा तो वे क्या करेंगे। उन्हें करने के लिये भी तो कुछ चाहिये वरना वे मेरे जैसे बैठे बैठे रोटी तोड़ेंगे। इससे उनका जीवन बेमजा हो जाएगा। फिर उनकी प्रतिभा कैसे निखरेगी। चुनौतियों का सामना करने से न।   ओषो ने कहा था कि काॅपी का उतना महत्व नहीं यूनिक चीज हीं मूल्यवान होती है। इसलीये मैं यूनिक बन रहा हूं। ठीक कर रहा हूं न ?






मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

जलवायु परिवर्तन ऐसे रोकें।

 जलवायु परिवर्तन को रोकना असंभव नहीं, अगर विकाषील राष्ट्र  विकसित देषों के सुझावों पर अमल करंे तो। विकसित देषों के सुझावों पर अमल कर जलवायु परिवर्तन को आसानी से रोका जा सकता है। विकसित देषों का कहना है कि विकासील देष अगर हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगा देंगे, तो विकसित देष चाहे कितना भी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कर लें उससे क्लाइमेट चेन्ज नहीं होगा। इसको इस तरह से समझा जा सकता है। जिस प्रकार परमाणु क्लब में षामील राष्ट्रों को छोड़कर अन्य देषों के परमाणु हथियार बनाने से हथियारों की होड़ षुरू हो जाएगी। लेकिन परमाण राष्ट्रों के अपने परमाणु हथियारों के खत्म किए बिना हीं विष्व से परमाणु हथियारों का खात्मा माना जाएगा। जैसे कि अमेरिका के नेतृत्व में नाटों देष चाहे दूसरे देषों पर कितना भी बम बरसा लें उस  देष की संप्रुभता पर कोई खतरा उत्पन्न नहीं होगा। लेकिन अगर भारत पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों से बाज आने की चेतावनी भी दे दे तो साउथ एषिया का षक्ति संतुलन बिगड़ जाएगा।  षांति व्यवस्था खतरे में पड़ जायेगी। हथियारों की होड़ षुरू हो जाएगी। अमेरिकी विदेष मंत्री का दौरा षुरू हो जाएगा। भारत को संयम रखने का उपदेष पिलाया जाएगा। इसको इस तरह से भी कहा जा सकता है कि परमाणु हथियारों से सम्पन्न राष्ट्र चाहे जितना परमाणु हथियार बनाना लें, विष्व के सुरक्षा व्यवस्था को कोई खतरा नहीं उत्पन्न होगा। और कोई देष बनाने की कोषिष करे तोे खतरा हीं खतरा नजर आएगा। जिस प्रकार विकाषील राष्ट्ों द्वारा अपने  किसानों को दी जाने वाली सब्सीडी कम या बंद कर देने से विष्व से मंदी दूर हो जायेगी। विष्व व्यापार संतुलित हो जाएगा। जिस प्रकार ओसामा के मारे जाने से विष्व से आतंकवाद खत्म हो जाएगा। जिस प्रकार आरक्षण लागू कर देने से समाज के एक वर्ग की किस्मत चमक जाएगी। दहेज कानून बन जाने से बहुओं की होली नहीं जलायी जाएगी आदि।
इसी को बात को विकसित राष्ट्रों ने एक मार्मिक अपील द्वारा विकाषील देषों को अपनी बात समझानी चाही है।
प्रस्तुत है उस अपील का सारांष-

विकसित राष्ट्रों की मार्मिक अपील - प्रिय विकाषील राष्ट्रों आप विकसित देषों की मांगों  पर उदारतपूर्वक विचार करें । चीन के कहा में मत आओ जी ,इतना निष्ठूर भी मत बनो जी। आखिर मानवता भी तो कुछ चीज होती है।  हमारी तुलना अपने आपसे क्यों करेते हो जी। हमें दुखों में रहने का कहां अनुभव है, लेकिन आपके साथ तो ऐसी बात नहीं है जी। हमें तो उपभोग का नषा है। लेकिन क्या आप के साथ भी ऐसा है। लोग कहते हैं कि पष्चिम उपभोग से उब चुका है। अब अध्यात्म की ओर लौट रहा है। लोगों की बातों में मत आओ जी। लोगों का तो काम है कहना। पुरानी आदत जल्दी कहां छुटती है। हमलोग एकदम मजबूर हैं जी।  लेकिन आप की धरती से तो संयम उपदेष गुंजा है। भारत जैसे देष में तोे पेड़-पौधों एवं नदियों तक को देवता कहा गया है। पर्यावरण का नुकसान पहंुचाकर अपने देवता का अपमान करोगे। आप पर्यावरण को नुकसान पहंुचाकर अपने देष का नाक मत कटवाइए। अपनी तुलना हमसे मत करो जी हम एडिक्ट हैं एडिक्षन इतनी जल्दी कहां छुटती है। आप षराब पीने वाले को कह दीजिए कि आज से वे षराब पीना छोड़ दें तो मुष्किल हो जाएगी जी। लेकिन आपने तो अभी षुरूआत की है जी, आप तो छोड़ सकते हो जी। इसलीए जलवायु परिवर्तन रोकने का जिम्मा ले लो जी। हमसे मत अपेक्षा रखो जी।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

नेताजी का चिंतन

उत्तर प्रदेष चुनाव किसी के लिए राजयोग लेकर आया है तो किसी के लिए स्वाथ्यय योग। तो अनेकों के लिए कंगालयोग भी । राजयोग एवं कंगाल योग की चर्चा बाद में होगी। आइए पहले हम  स्वास्थ्य योग की चर्चा करता करते हैं। लफुआ एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार देष के ज्यादातर वीआईपी हैवी वेट के षिकार हंै। चाहे मंत्री हो, सांसद हों, विधायक हों, या फिर अधिकारी सभी की एक हीं बीमारी है। लेकिन आषा है कि इसमें से नेताओं की अधिकांष बीमारी का इलाज उत्तर प्रदेष चुनाव में हो जाएगा। कारण कि उनको इस चुनाव में खूब परिश्रम करना होगा। खूब पसीना बहाना होगा। परिणाम घोड्ढित होने पर षाॅक थेरेपी एवं हड्र्ढ थेरेपी दोनों हो जाएगी। झोलाछाप डाॅक्टरों का इसके विपरीत मत है। उनका कहना है कि उत्तर चुनाव के दौरान उनके सेहत में सुधार न होकर उनके स्वास्थ्य में गिरावट दर्ज की जायेगी। झोलाछाप डाॅक्टरों का तर्क है कि इसका कारण यह है कि चिंतन करके परिश्रम तो वे लोग पहले से कर रहे हैं। क्षेत्र भ्रमण उनके लिये ओवर डोज हो जायेगा। इस पर कुछ लोग चुटकी लेने से भी नहीं चूकते और कहते हैं कि आखिर नेताओं को चिंता नहीं होगी तो किसे होगी। आखिर घोटाले के तरीके जो उन्हें सोचना होता है। घोटाला करके बचाव जो करना होता है।  घोटाला करने वाला भी चिन्तित है और नहीं करने वाला भी। यह तो वह बात हुई न जो खाये वो भी पछताए जो न खाये वो भी पछताए। जिन्हें घोटाले नहीं करने का मौका मिला है वे भी चिंंितत हैं और जिन्हें मिला है वे भी चिन्तित हैं। मेरे क्षेत्र के नेताजी की इस बीमारी से हालत सीरियस है।  उनके लिए चिंता एवं चिंतन एक हीं है।
नेताजी की कर्मठता आलम यह है कि वे रात-दिन क्षेत्र के विकास के लिए चिंतित रहते हैं। चिंता से उनका वजन 65 किलो से 105 किलो का हो गया है। पिछले कुछ वड्र्ढों में क्षेत्र हित में वे इतना चिन्तित रहे हैं उन्हें पता हीं नहीं चला कि पांच साल कैसे गुजर गया। षुरू से उनकी इच्छा रही है कि ,उनके क्षेत्र का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो। इसके लिए पूरे पांच साल चिंतन किए हैं। उनका का कहना है कि क्षेत्र को विष्व मानचित्र पर लाने के लिये पांच साल का चिंतन काफी नहीं है। उन्हें पांच साल और मौका दिया जाना चाहिए। जनता आखिर नेताजी के त्याग को किस मूंह से भूलेगी कि उन्हें मौका नहीं देगी। चिंतन में निमग्न रहने के चलते वे पांच वड्र्ढ में पांच बार भी क्षेत्र में दर्षन नहीं दिये हैं।  लोग अब अखिंया हरिदर्षन की जगह नेताजी के दर्षन को प्यासी गा रहें हैं।  नेताजी ने पत्नी से साफ कर दिया है कि, जब वे जनता का हित चिंतन करते हों तो कोई उन्हें डिस्टर्ब न करे। आखिर जनता के हीं पुण्य प्रताप से वे फल-फूल रहे हैं। दिन दूनी रात चैगुनी उन्नति कर रहे हैं। पहले साईकिल पर चलते थे। अब कार एवं हवाई जहाज की षैर करते हैं।  उनका कहना है कि आज भी वे साइकिल पर चलना चाहते हैं लेकिन जनता की इज्जत का ख्याल कर ऐसा नहीं करते। आखिर जनता की नाक जो कट जाएगी उनके साइकिल पर चलने से। उनके चिंतन से भाभीजी यानी नेताजी की धर्मपत्नी जी डबल चिंतित हैं। भाभीजी के बार-बार अपील करने पर भी वे परिश्रम करना नहीं छोड़ते।  ज्यादा परिश्रम करने का नतीजा है कि वे हैवी वेट का षिकार हो गये हैं। और डायबीटीज जैसी बीमारी हो गयी है। वे डायबटीज का षिकार होकर इस मिथक को तोड़ दिए हैं कि डायबटीज परिश्रम करने वाले को नहीं होता। आखिर चिंतन परिश्रम में नहीं आता है तो किसमें आता है? आषा है कि उनके हित चिन्तन का परिणाम इस चुनाव में जरूर मिल जाएगा। इसके पहले भी कई रिकाॅड उनके नाम है। जैसे नैतिकता जैसी कोई चीज नहीं होती। सत्य मिथ्या कल्पना है आदि। इस चुनाव में वे जनता सेे वादा किये हैं कि अगर वे चुनाव जीत गये तो जनता के प्यार के कर्ज को चुका देंगे यानी तिहाड़ जाकर उनका नाम रौषन कर देंगे। वे इस क्षेत्र के उपलब्धि में एक अध्याय जोड़ने के लिए प्रयासरत है। कामना कीजिए वे सफल हों।

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

मोदी का राजतिलक के लिए अनुष्ठान।

विगत दिनों मोदी के एक बाद एक उपवास ने मुझे इस निष्कड्र्ढ पर पहंुचने को मजबूर कर दिया कि ,अगर अन्ना के आंदोलन ने सबसे ज्यादा किसी को प्रभावित किया है तो वह हैं नरेन्द्र मोदी। भले हीं लाखो लोग अन्ना के समर्थन में सड़कों पर उतर आयें हों। या मैं हूं अन्ना तू है अन्ना का लोग गीत गायें हों, लेकिन नरेन्द्र मोदी के आगे सब फीके हैं। भले अन्ना अरबिंद केजरीवाल या किरन बेदी को अपना नजदीक बताएं या कोई अन्य उनके आगे-पीछे मड़राए। लेकिन नरेन्द्र मोदी उनके सबसे अधिक करीबी हैंैं, क्योंकि वे उनके आंदोलन को अबतक जीवित रखे हुए हैं। वे उनके अनषन से इतना अधिक प्रभावित हुए हैं कि उनका महीने का आधा दिन उपवास में बीत रहा है। वैसे मैं भी अन्ना के उपवास से कम प्रभावित नहीं हुआ था, लेकिन निगमानंदजी का हाल देखने के बाद मैंने अनषन न करने में हीं अपनी भलाई समझी। मुझे लगा कि उनकी तो लोग खबर भी पा गए, मेरे स्वर्ग सिधारने को लोग जान भी पाएंगे की नहीं। एक दूसरी बात भी मैं आपको बता दूं, कि मोदीजी के अनषन सेेे सबसे ज्यादा अगर कोई प्रभावित है तो वह हैं बघेलाजी। कांग्रेस को भले हीं बघेलाजी पर षक नहीं हो रहा हो, लेकिन मुझे तो हो रहा है जी क्योंकि बघेला जी मोदीजी के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। कभी भी बघेलाजी एवं मोदीजी मिल सकते हैं। इतिहास कभी भी इस सदी की सबसे बड़ी दुर्घटना का साक्षी बन सकता है। और इस दुर्घटना के बाद मोदीजी बघेलाजी के षिष्य बनेंगे कि बघेलाजी मोदीजी के, मैं कुछ कह नहीं सकता । मोदी के विरोधियों का कहना है कि उनका अनषन राजतिलक के लिए हो रहा है। मुझे यह नहीं पता कि वे अनुष्ठान कर रहे हैं या आत्मषुद्धि या फिर आडवाणी जी कोे किनारे लगाने के  लिए कुछ और। कुछ लोगों का कहना है कि उनमें अषोक की तरह  वैराग्य का भाव आ चुका है।
अगर वो राजतिलक के लिए अनुष्ठान करा रहे हैं तो आडवाणी जी चिंतित हों , गडकरी जी चिंतित हों, सुड्ढमा जी चिंतत हों, जेटलीजी चिन्तित हों। कांग्रेस में राहुलजी चिंतित हों, सोेनिया जी चिन्तित हों,  मनमोहन सिंह चिंतित होकर क्या करेंगे।
मेरा काम सूचना देना है, आप माने या ना माने चेते या ना चेते । ये आपकी मर्जी। यह कांग्रेस या भाजपा का सरदर्द है। मेरा नहीं। कुछ दिन पूर्व मोदीजी के साथ श्री-श्री मुलाकात के बाद भी मुझे कुुछ-कुछ होने लगा था। आडवाणी जो को हुआ था कि नहीं।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

समझावन गुरू

ईष्वर प्रत्येक व्यक्ति को षक्ति सम्पन्न बनाता है। किसी के साथ अन्याय नहीं करता। यह अलग बात है कि कोई उसकी दी हुई क्षमताओं का उपयोग कर पाता है और कोई नहीं। यह अपनी क्षमताओं का उपयोग हीं करना है कि कोई किसी को करोड़ो का चूना लगा देता है और कोई मूंह ताकता रह जाता है। यह क्षमता की हीं बात है कि कोई हीरा की चोरी कर मौज करता है और कोई खीरे के चोरी के आरोप में जेल की हवा खाता है। किसी को जेल में भी पकवान मिलता है तो कोई घर पर भी भूखों मरता है। अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार कोई इंजीनियर बन जाता है तो कोई डाॅक्टर बन जाता है।  उसमें से विषेड्ढ प्रतिभावान इंजीनियर  दुष्मन देष को टेक्नोलाॅजी बेंचने लगते हैं और विषेड्ढ प्रतिभा सम्पन्न डाॅक्टर किड़नी बेंच कर लोगों का दूख दूर करने लगते हैं। इसी प्रकार अतिविषेड्ढ तेलगी और हड्र्ढद मेहता बन जाते हैं। अमर सिंह जी और कलमाड़ीजी आदि भी विषेष क्षेत्र के विषेड्ढ प्रतिभावान हैं। मुझे भी एक विषेड्ढ प्रतिभासम्पन्न के सानिध्य में रहने का सौभाग्य मिल चुका है, जिसके बारे में मेरा दावा है कि  आज नहीं कल वे अपने व समझाने की क्षमता के चलते पूरे विष्व में जाने जाएंगे। आइए उनके बारे में थोड़ा बात करते हैं। यह षख्स अपनी समझाने की क्षमता के चलते अपनी बीवी से लेकर आॅफिस के कर्मचारी के दिलों पर राज करता है। अपनी बीबी से वह 20 साल बड़े थे। लेकिन उन्होंने उसे ऐसा समझाया कि घर से बगावत कर बैठी। वह केवल उनके नाम की माला जपने लगी। माता-पिता के समझाने का कोई असर नहीं हुआ। फिर क्या था परिवारवालों ने चट मगनी पट षादी कर दी तब जाकर बगावत थमी।
 मेरा तो पक्का विष्वास है कि अगर उनके समझाने की क्षमता का उपयोग किया जाए तो पाकिस्तान आतंकवादियों को भेंजना भूल जाये। और चीन अरूणाचल में घुसना भूल जाए। अगर अन्ना समझावन गुरू के प्रतिभा को उपयोग करते तो उन्हें 13 दिनों तक अनषन नहीं करना पड़ता और नहीं रामदेवजी को डंडे खाने पड़ते। अभी भी समय नहीं गुजरा अन्ना एण्ड कम्पनी यह समझे कि  कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने से नहीं, समझावनगुरू की सेवा लेने से लोकपाल बिल पास होगा। अगर अन्ना हजारे एवं बाबा रामदेव को समझाने के लिए समझावन गुरू को भेंजा गया होता तो  सरकार को इतनी फजीहत नहीं हुई होती। सरकार की गलती यह रही गई कि उसने कपिल सिब्बल जैसे नेताओं की प्रतिभा पर भरोसा किया। जो केवल अब तक स्वामी अग्निवेष को समझा पाये हैं।  रामदेवजी को नहीं समझाने के कारण सरकार को  रामलीला मैदान जैसा अलोकप्रिय कदम उठाना पड़ा।

आइए हम समझावन गुरू के साथ अपने स्वयं के अनुभव कोे साझा करते हैं। बात उन दिनों की है जब मैं उनके यहां नौकरी करता था। मैडम तो अक्सर टूर पर रहती थीं। समझावन गुरू के हवाले हीं आॅफिस से लेकर फील्ड की देख- रेख था। सुबह हमलोगों को फील्ड में एक-दो घंटे कार्य के बाद कोई कार्म काम नहीं बचता था। लेकिन समझावन गुरू हमें मुफ्त की रोटी तोड़ना नहीं देना चाहते थे। इसलिए सुबह से लेकर षाम तक समझाते थे।
वह हमलोगों घर में समझाते । बाग में समझाते । आॅफिस में समझाते। कोर्ट पहनकर समझाते। टाई लगाकर समझाते, लुंगी बहनकर समझाते। माइक हाथ में लेकर समझाते। सोते हुए समझाते। बैठते हुए समझाते। कविता कहकर समझाते। गाना गाकर समझाते। चाय पिलाकर समझाते,  खाना खिलाकर समझाते थे।  हम लोगों का आठ घंटा का कार्य समझना था और उनका काम समझाना था। हमलोग समझने के बदले पगार पाते थे। और वो मैडम का प्यार या दुत्कार। लोगों का कहना था कि हमदोनों अर्द्ध बेरोजगार थे। आपका क्या कहना है ?
वैसे समझावन गुरू के प्रतिभा को पहचाना जाने लगा है। और पहला आॅफर स्वर्ग लोक से आया है। खबरों के अनुसार स्वर्ग से भारत रत्न नहीं  पाने वाली कुछ अतृप्त आत्माओं ने उनसे संपर्क किया है और कहा है कि जीते जी न सही मरणोपरांत  भारत रत्न देने के लिए सरकार को तो समझा हीं दो। वैसे  ओबामा की ओर से भी उन्हें आॅफर आया है कि दोबारा राष्टपति बनाने के अमेरिकी जनता को वे समझायें। मेरा राजनेताओं से भी कहना है कि समझावन गुरू की सेवा लीजिए जूते की जगह फूल बरसने लगेंगे।


गुरुवार, 24 नवंबर 2011

इन्द्र का विलाप


इन्द्र का भगवान विष्णु के घर आगमन। त्राही माम् त्राही माम् कहकर उनके चरणों में लोट जाना। भगवान का आष्चर्य चकित होना और सोचना आखिर इन्द्र को यह क्या हो गया है। बचाओ -बचाओ का स्वर फिर इन्द्र के मुंह से फूट पड़ना। क्या हुआ इंद्र किससे तुम्हें बचाऊं। यहां तो नारद के सिवाय कोई नहीं है।  वो भी अपने स्वभाव के विपरीत चुपचाप बैठे हैं। फिर कुछ सोचकर इन्द्र राक्षस फिर से आक्रमण कर दिए हैं क्या? । नहीं भगवान मृत्युलोक के लोग घनघोर तपस्या कर रहें । उनके तपस्या से जब मेरा इंद्रासन डोलने लगा तो मै आपके पास दौड़ा चला आया। आखिर आपहीं तो मेरा आश्रयदाता हैं। माई-बाप हैं। मेरी हर मुष्किल घड़ी में आखिर आपहीं ने तो साथ दिया है। सच है जगत के और संबंध मिथ्या है। प्रभु से प्रीत लगाने में हीं जीव की सार्थकता है। फिर इन्द्र ने षंका जाहिर किया लगता है भगवन वे इन्द्रासन पर कब्जा करने के लिए तपस्या कर रहे हैं। व्रत एवं उपवास कर रहे हैं। खासकर नरेन्द्र मोदी जी एवं बघेला जी से मैं खाषा चिन्तित हूं। वे दोनो प्रतिस्पर्धा पर व्रत एवं उपवास कर रहे। यहीं नहीं उत्तर प्रदेष में भी नेता थोक के भाव में अनुष्ठान करा रहे हैं। स्थिति यहां तक पहंुच चुकी है कि पंडितों की एडवांस बुकिंग हो गयी है। सामान्य भक्तों को पूजा-पाठ कराना मुष्किल हो रहा है। राजनेताओं के घर अनुष्ठान को देखकर, मुझे प्रतीत हुआ कि यह राजसत्ता के लिए हीं हो रहा होगा। वो आपको पाने के लिए थोड़े अनुष्ठान कर रहे हैं।  हे नटवर मेरा डर काल्पिक कैसे हो सकता है। अगर नेता चुनाव के वक्त अनुष्ठान करा रहा है तो वह राजसत्ता के लिए करा रहा होगा न। वैसे भी नेताओं की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं से आज परचित कौन नहीं है। नेताओं के बढ़ती महत्वाकांक्षा से मैं विषेड्ढ चिंतित हूं नटवर। वे जेल यात्रा को इतना सहज ले रहे हैं,  मानो जेल नहीं किसी पर्यटन स्थल पर जा रहे हों।  । इससे मेरी चिंता और बढ़ गयी है मुरली मनोहर। मैं यह सोचकर भयभीत हूं कि अगर कभी वे आपसे इन्दासन मांग लिए । और आपने प्रसन्न होकर उन्हें दे दिया तो मेरा क्या होगा कृष्ण कन्हैया। क्या ऐषो -आराम के बिना मैं एक दिन भी रह सकूंगा। यहीं सोंचकर हमें नीद नहीं आ रही है दुनिया के दाता। यहीं नहीं नटवर उनकी बीबीयां भी आपको मनाने के लिए अनुष्ठान कर रही हैं। ऐसे में मेरा डरना स्वभाविक है कि नहीं। आखिर नारी षक्ति के आगे हर कोई नतमस्तक हुआ है। आपभी हो सकते हैं। दूसरी बात सामुहिक पूजन का फल भी अधिक कहा गया है। मुझे डर है भगवन कहीं आप जनमत से प्रभावित न हो जाएं। ठीक वैसे जैसे धरती पर नेता बहुमत को ध्यान में रखकर हर फैसले लेते हैं। वैसे भी आप सरल हृदय हैं आपको लोग  बहला फुसला जल्दी लेते हैं। इसलिए उत्तर प्रदेष चुनाव तक कृपया आप मुझे अपने साथ रखें।

सोमवार, 21 नवंबर 2011

नीतीश भयग्रस्त हैं

खबर है कि सुषासन बाबू भयग्रस्त हैं। और इस कारण वे अति व्यस्त हैं।  धड़ाधड़ विकास कार्यो में तल्लीन हैं। उनके व्यस्तता से लगता है चुनाव उत्तर प्रदेष में न होकर बिहार में हो रहा है। इतना तो बहन मायावती भी नहीं व्यस्त हैं, जिनके राज्य में चुनाव होने जा रहा है। उनके विरोधियों का कहना है कि अगर वह भयग्रस्त नहीं होते तो पटना में बैठकर सत्तासुख भोगते, राज्य में घूम-घूमकर उपद्रव नहीं करते। हालांकि बहन मायावती भी व्यस्त हैं । लेकिन वे दूसरी तरह से व्यस्त हैं। वे पार्कों एवं मुर्तियों के उद्घाटन एवं निर्माण में व्यस्त हैं। मंत्रियों का क्लास लेने में व्यस्त हैं। नीतीष कुमार को लग रहा है कि वे अभी से व्यस्त नहीं रहेंगे तो लालू अतिव्यस्त होकर कहीं जनता का कान न भर  देेें। फिर तख्तापलट में देर नहीं लगेगी, कारण कि जनता विकास कार्य को भूल जाती है। जाति को याद रखती है। लेकिन नीतीष के व्यस्त होने से राज्य के अधिकार एवं बाबू त्रस्त हैं। कारण कि वे अपनी वीवीयों के यहां टाइम से हाजिरी नहीं दे पा रहे हैं। आधिकारियों को वीवीयों और नीतीष दोनों की डाॅट सहनी पड़ रही है।  नीतीषजी अधिकारियों को उपदेष पिलाने में व्यस्त हैं तो अधिकारी बाबूओं को हड़काने में व्यस्त हैं। नीतीष व्यस्तता में थोक के भाव में आदेष दे रहें ,जिसको वे देर राततक पूरा नहीं कर पा रहे हैं। वे षेड्ढ कार्यों को सपनों में निपटा रहे हैं। विरोधियों का कहना है कि जिस राज्य में व्यक्ति को सपनों में भी स्वतंत्रता प्राप्त न हो, उसे तानाषाही कहना ठीक होगा, सुषासन नहीं।
यह भी कहा जा रहा है कि  लालू का भूत अभी नीतीष का पीछा नहीं छोड़ रहा है। विक्कीलीक्स के खुलासे के अनुसार मुख्यमंत्री रात में सोते वक्त बार-बार जाग जाते हैं। कारण कि वे स्वप्न में लालू यादव को अपनी कुर्सी पर बैठा पाते हैं।
एक दुसरी खबर के अनुसार वे जब कभी फुर्सत में रहते हैं। तो दूसरे लोक में गमन करने लगते हैंैं और लालू यादव के मुख्यमंत्री के कुर्सी पर बैठे रहने के बारे में मनन करने लगते हैं, और उसके बाद उनके मुंह से बरबस निकल पड़ता है, कभी कुर्सीं छूट गई तो हम जीकर क्या करेंगे।
बस इसी गम को भुलाने के लिए राज्य का ताबड़तोड़ दौरा कर रहे हैं।
ऐसा नहीं केवल नीतीष व्यस्त हैं। नरेंद्र मोदी भी व्यस्त हैं। सूत्रों के अनुसार मोदी व्यस्त हैं इसलिए नीतीष भी व्यस्त हैं। हालांकि कुछ लोगों का इसके उल्टा भी कहना है।
एक अन्य खबर के अनुसार नीतीष कुमार नरेंद्र मोदी के चुनौती को स्वीकार करके व्यस्त हैं न कि लालू यादव के कारण व्यस्त हैं। नरेंद्र मोदी को अंगया देकर बीजे गायब करने के बाद मोदी ने  नीतीष को गुजरात की तरह विकास करके दिखाओ की चुनौती दी थी, जिसे नीतीष ने सहड्र्ढ स्वीकार लिया था और उसी समय से व्यस्त हो गये थे। लेकिन बीजेपी नेताओं ने मोदी को खूब कोसा था कि उनके कारण, वे नीतीष के ब्रम्हभोज से वंचित रह गए।
सूत्रों के अनुसार अमेरिकी प्रषासन द्वारा मोदी की तारीफ से और टाइम मैगजीन द्वारा नीतीष की तारीफ से दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा चरम पर पहुुंच गयी है।


प्रसिद्ध राजनीतिक विष्लेड्ढक लालू यादव का कहना है कि अगर नीतीष इसी तरह अधिकारियों को व्यस्त रखे तो राज्य को सौ साल पीछे जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। उनका कहना है कि अधिकारी दबाव में जी रहे हैं। उनका कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है। वे कार्य स्थल पर हीं सो जा रहे हैं।

मुझे कुर्सी दे दो नाथ।

हे कृपा निधान , हे भगवान, मैं अपने आपको तुम्हें समर्पित कर रहा हूं। कृपया मुझे कुर्सी दे दो नाथ। फिर जीवन भर जोडूंगा तेरा हाथ। हे नाथ तुने सबकी इच्छाओं को पूरा किया है। तेरी कृपा से लंगड़ा पर्वत चढ़ जाता है ,अंधा देखने लगता है, बहरा सुनने लगता है, गूंगा बोलने लगता है। तेरी कृपा मात्र से आदमी को क्या कुछ नहीं मिल जाता है। हे नटवर तुमने अपने भक्तों को यह बचन दिया था कि  तेरी षरण में जो आ जाता है, उसके तुम सारे दुख हर लेते हो । उसे तुम मनोवांछित फल प्रदान कर देते हो। तुमने भक्तों से अहंकार छोड़ने को कहा है, मैंने अहंकार छोड़ दिया है। मैं अब तुम्हारी षरण में हूं। मैं अपने बल पर यह चुनाव नहीं जीत सकता नटवर। तुम भक्तों के कल्याण के लिए धरती पर जन्म तक ग्रहण कर लेते हो। क्या तुम मेरी चुनावी नैया पार करने के लिए एक चमत्कार तक नहीं कर सकते। तुमने दूसरे के भलाई के बारे में सोंचने को कहा था, इसलिए मै दूसरे के बारे में सोच रहा हूं। मेरे विरूद्ध चुनाव लड़ रहा षख्स माया केे वषीभूत है नाथ। उसे हित अनहित का ध्यान नहीं है। मैं नहीं चाहता कि वह चुनाव लड़कर माया के अधीन हो। इसलिए उसे माया से दूर करना चाहता हूं। पर वह मेरी सुनता हीं नहीं। चुनाव में मुझसे जो उसकी बढ़त दिखाई दे रही है वह क्षणिक सुख है। जिसे वह स्थायी समझने की भुल कर रहा है। मैं नहीं चाहता कि मेरा विरोधी माया ग्रस्त हो। माया बड़ी बलवती है। जब वह भगवान को नहीं छोड़ती तो भला उसे कैसे छोड़ेगी। उसे तुम माया से मुक्त कर दो नाथ। वह मेरी बात नहीं सुन रहा है नटवर। मैंे उसे षाम- दाम -दंड- भेद दिखाकर थक गया हूं। वह नहीं माना। अब तुमपर हीं आस टिकी है ,तेरी कृपा पर हीं मेरी सास टिकी है।  हे कृष्ण कन्हैया तुम मुझे मेरे विरोधियों से मुक्ति प्रदान कर दो। उसे तुम त्याग का उपदेष पिला दो। उसे तुम बता दो कि यह जीवन नष्वर है।  इसके लिए मोहग्रस्त होना कहां की बुद्धिमानी है? इसके लिए वह क्यों माया- मोह कर रहा हैं । वह क्यों दूसरे के हक को छीनने की कोषिष कर रह है। क्यों सांसारिकता में उलझ रहा है। अन्त समय कोई उसके साथ नहीं जाएगा। उन्हें यह बता दो कि सिंकन्दर विष्व विजयी होकर भी इस संसार से खाली हाथ हीं गया था। उसे तुम यह बता दो कि हर जीव में वह खुद को देखेगा तो उसका द्वैत मिट जाएगा, दूसरे की उपलब्धि अपनी नजर आएगी। फिर उसे चुनाव लड़ने कि आवष्यकता हीं नहीं महसूस होगी। मैं चुनाव हार कर कहां मंुह दिखाउंगा कृष्ण कन्हैया। इसलिए सन्यास ले लूंगा। लेकिन मेरा सन्यास मजबूरी में लिया गया होगा। क्या यह कायरता नहीं होगी ? क्या यह अध्यात्म के मूल सिद्धान्त के विरूद्ध नहीं होगा? अध्यात्म की पुस्तकों में कहा गया है कि, सन्यास का भाव हृदय से उठना चाहिए। और सन्यास गृहस्थ आश्रम में रहकर भी फलीभूत हो सकता है। समस्याओं से भागकर जंगल चले जाना भगेड़ूपन है। मेरी लाज अब तेरे हाथ में है गिरिधर। और तेरी लाज मेरे हाथों में, क्योंकि अगर यह चुनाव मैं हार गया, तो तुम्हारे इस कथन पर कोई विष्वास नहीं करेगा, कि जो अपने आपको तुम्हें समर्पित कर देता है, उसके तुम सारे कष्ट दूर कर देते हो।

श्री श्री रथ पर सवार चले रे।


सब लोग टीवी पर नजर गड़ाए हंै। टीवी पर खबरें प्रसारित हो रही है। खबरें भगवान विष्णु को व्यग्र कर रही है। भगवान ंिचंता के मारे कमरे में चहल कदमी षुरू कर दिए हैं। लोगों को यह नहीं समझ में आ रहा है, कि भगवान इतना व्यग्र क्यों हो रहे हैं। समाचारवाचक ने ऐसी कौन सी खबर सुना दी, जिससे भगवान व्यग्र हो गये। श्री श्री रथ हीं तो निकाल रहे हैं। आडवाणी जी ने भी तो रथ निकाला था, रामदेवजी ने भी तो निकाला था तब तो भगवान इतना व्यग्र नहीं हुए थे। श्री श्री तो उनके भक्त हैं। उनके लिए तो यह खुषी की बात होनी चाहिए , कि श्री श्री रथ पर सवार होकर उत्तर प्रदेष का भ्रमण कर रहे हैं।  उनका एक भक्त तरक्की कर रहा है। आॅलराउंडर बन रहा है।  उपलब्धि हासिल कर रहा है।  क्या भगवान भी सामान्यजन की तरह ईष्या एवं द्वेष के वषीभूत हैं? क्या भगवान को भी अपने भक्त की तरक्की पसंद नहीं है? वे तो भक्तों के कल्याण के लिए षरीर तक धारण कर लेते हैं। फिर श्री श्री का रथ पर सवार होना उनको क्यों नहीं सुहा रहा है। भगवान को यह रोग कब से लग गया? क्या मृत्युलोक के लोगों का प्रभाव उनपर पड़ रहा है।
अब भगवान के पदचाप के सिवा कमरे मंे एकदम सन्नाटा छाया है। कोई कुछ नहीं बोल रहा है। अन्ततः भगवान ने हीं चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि देखो न नारद आखिर श्री श्री भी माया के अधीन हो हीं गए। मुझे उनसे यह उम्मीद नहीं थी। अब भला बताओं ना नारद जब श्री श्री रथ की सवारी करेंगे तो अन्ना हजारे एवं सरकार में सुलह कौन कराएगा।  रामदेवजी को कौन जूस पिलाएगा। अन्ना एवं सरकार में सुलह कराने के लिए श्री श्री ने कितना प्रयास किया था। सरकार की रूख तो तुम देख हीं चुके हो। निगमानंदजी का क्या हश्र हुआ तुम जानते हीं हो। मुझे उन लोगों की चिंता है जो अनषन कर रहे हैं या भविष्य में करने वाले हैं। आखिर मै हीं तो सबका भरण-पोषण करता हूं। सबके हित में सोचता हूं। कहीं ऐसा न हो कि अनषनकारियों की कोई खोज- खबर हीं न ले। उनके अनषन तोड़वाने के लिए कोई पहल हीं न करे। श्री श्री निगमानंद जी का अनषन तोड़वाने का पहल नहीं किए तो थे तो क्या हुआ ? वीआईपी का अनषन तोड़वाने का जिम्मा तो ले हीं चुके हैं न। नहीं तो वो काम भी मुझे हीं करना पड़ता। वैसे भी मुझपर यह आरोप लग रहा है कि मैं पालकी वाले भक्तों का ज्यादा सुनता हूं। उनको कौन समझाये अगर मैं उनकी नहीं सुनुंगा तो क्या वे मेरी सुनेंगे। आखिर उनके पास किस चीज की कमी है। जो मुझे भाव देंगे। सामान्य भक्त मजबूर हैं मुझे याद रखने के लिए । लेकिन वीआईपी भक्तों की आखिर क्या मजबूरी है।
 नारद तो श्री श्री का जगह ले नहीं सकते। क्योंकि उनको तो मैं पहले हीं उत्तर प्रदेष चुनाव की रिर्पोटिंग की जिम्मदारी सौंप चुका हूं। उनके बिना तो सारा मजा किरकिरा हो जाएगा। आखिर कौन मिर्च मसाला लगाकर खबरों को सुनाएगा।
 मैं श्री श्री को भी दोड्ढ नहीं दे सकता। आखिर सब बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं, तो उन्होंने धोकर कौन सा अपराध कर दिया है।  मैं श्री श्री को रोकने वाला भी कौन होता हूं। जो वो रथयात्रा निकालने से पहले  मुझसे पूछते। क्या श्री श्री रथ निकालने में समर्थ नहीं है। जो समर्थ होता है कहां मुझसे पूछता है। क्या रामदेव ने मुझसे पूछा था। क्या मैं रामदेव को रोक पाया था।
अगर मेरी बात रामदेव माने होते तो क्या उन्हें सलवार कमीज पहननी पड़ती। एक हीं झटके में वे गेरूवा वस्त्र को उतार फेंके होते । क्या उन्हें यह भान नहीं होता कि आत्मा अजर-अमर अविनाषी है। उसे कोई मार नहीं सकता, पानी गला नहीं सकती अग्नि जला नहीं सकती। उनका डर तो यहीं बता रहा है न कि वे अभी भी अपने को षरीर हीं मान रहे हैं।  अगर उन्हें मेरे उपर भरोसा होता तो न तो वे तम्बू के नीचे छूपते। न हीं औरतों एवं बच्चों की सुरक्षा घेरा बनाने की बात करते । हां मैं स्वामी अग्निवेष को अपना सच्चा षिष्य मानता हूं जो मेरे आदेष से इन दिनों बिग बाॅस में प्रवचन कर रहे हैं। वे श्री श्री का जगह ले सकते हैं।


शनिवार, 19 नवंबर 2011

परिवर्तन जीवन का अटल सत्य है।

 मेरे एक मित्र ने मुझसे पत्र लिखकर पूछा है कि मैं रोज अपना नाम क्यों बदलता हूंूं। इसपर मेरा कहना है कि भाई साहब आप मेरे षुभ चिन्तक हैं कि दुष्मन। क्या आप मुझे तरक्की करते  देखना नहीं चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि मैं एक हीं जगह स्थिर रहूं? आगे नहीं बढ़ूं। आसमान की बुलंदियों को टच न करूं। वैसे आपकी इसमें कोई गलती नहीं है। दरअसल आप आदर्षवादी किस्म के जीव है। आप जैसे लोगों को थोड़ा सा परिवर्तन भी पहाड़ सा लगता है। ऐसे जीव-जन्तु भीड़-भाड़ से दूर षांत वातावरण में रहना पसंद करते है। मेरी आपको सलाह है कि आप बर्हीमुखी बने। लोगों के साथ घुलने मिलने का प्रयास करें। इसके लिए आप कोई क्लब ज्वाइन करें या जूआ खेलनेे वाले से संगत कर लें। वीयरबार या तषेडि़यों या गंजेडि़यों के संगत से भी आपमें समाजिकता आ सकती है।  आप परिवर्तन कोे सहज रूप से लें। याद रखें आप इक्कीसवीं सदी में रह रहें। पाड्ढाण युग में नहीं कि किसी भी चीज  को बदलनें में हजार या लाख वड्र्ढ लगेगा। ऐसा प्रष्न आपको उपहास का पात्र हीं बनाएगा। कारण कि ऐसे प्रष्न आपके आधुनिक नहीं होने की निषानी है। जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चलने की बानगी है। याद रखें अगर आप क्वारें हैं तो जीवन भर आप क्वांरें रह जाएंगे। भला ऐसे लड़के से कौन अपनी लड़की की षादी करेगा। जो 21वीं सदी में रहकर भी आदिम युग में जी रहा हो। ऐसा पति अपने आपको बीवी की इच्छा के अनुसार तेजी से बदल नहीं पाता।
 क्या वह सुबह उठकर बीवी को चाय बनाकर पिला पाएगा। अगर आप फिल्म देखते होंगे तो आप जानते होंगे कि फिल्मों के हीरो अपना नाम बदलते हैं। बहुत से ज्योतिड्ढियों को आपने यह दावा करते सुने होगें कि बस आप अपना नाम बदल दें ंहम आपकी किस्मत चमका देंगे। जगत का हर चीज परिवर्तनषील है। नदी की धारा प्रतिक्षण बदलती रहती है। स्थिरता भ्रम है, जबकि नवीनता हीं जीवन है। दूसरी बात यह है कि सृष्टि का प्रत्येक चीज परिवर्तनषील है। अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आदमी को प्रतिक्षण बदलना पड़ता है। जो नहीं बदलता है वह अपना अस्तित्व खो देता है। विकासवाद का सिद्वान्त भी यहीं कहता है। जब नैतिक और सामाजिक मूल्य तेजी से बदल रहा हैं तो फिर आपको बदलने में क्यों परेषानी हो रही है। भाई साहब मेरा नाम बदलना आपको क्यों ब्रेकिंग न्यूज लग रहा है। यह बात मेरे समझ में नहीं आ रही है।
मेरे नाम बदलने में क्या रखा है। आज व्यक्ति अपना गांव और गांव की यादों को सहजता से भूल जा रहा है। मां-बाप के प्यार को भूल जा रहा है। ग्रर्लफ्रेन्ड रोज बदल रहा है। मूंछ मूडवाकर मोछमुडा बन जा रहा है। लड़कियों जैसा बाल बढ़ा रहा है। लड़का अपने को लड़की के रूप में दिखाना चाह रहा है और लड़की अपने को लड़के के रूप में। अब तो पति एवं पत्नी का बदलना फैषन हो गया है। नेता असानी से पार्टी बदलता है। जो जितना पार्टी बदलता है वह उतना फायदे में रहता है। एक हीं जाॅब करने से क्या आपको तरक्की मिलेगी। कभी बहुरूपिया लोगों का मनोरंजन का साधन हुआ करता था । आज हर कोई बहुरूपिया हो गया है, इसलिए बहुरूपिए में कोई रस नहीं रह गया है। कल तक लोगों को दलाल कहकर अपमानित किया जाता रहा है। आज दलाली कमाऊ पूत बन गया है। भला षेयर दलाल को कौन नहीं सम्मान से देखेगा। कल तक दलबदलू से पार्टियां दूर रहती थी क्योंकि अन्य सदस्यों को यह रोग लग सकता था लेकिन आज उनको पटाकर रखा जाता है, क्योंकि विपत्ति के वक्त वहीं काम आते है। नोटों की गडिडयां बंटवाते हैं। बहुमत जुटाते हैं।
 परिवर्तन से भगवान भी अछूते नहीं है, तो हमारे और आपमें क्या रखा है। आखिर एकहीं ईष्वर कभी राम बनकर तो  कभी ष्याम बनकर आते हैं।  परिवर्तन का महत्व नहीं होता तो क्या वे अपने भक्तों को एकहीं रूप नहीं दिखाते।
भगवान हीं नहीं भगवान के भक्त भी बदल गए हैं। पहले वे  नंगे पांव चलते थे। जगंल में रहते थे। कंदमल- फूूल खाते थे। जमीन पर सोते थे। गरीब-अमीर को समभाव से देखते थे। कामिनी कंचन से दूर रहते थे  तब जाकर भगवान प्रसन्न होते थे।
आज अगर वह पालकी में नहीं सवारी करेंगे, एयरकंडीषन में नहीं निवास करेंगे,  अमीरों पर अपना स्नेह नहीं बरसाएंगे,  कामीनी कंचन से दूर रहेंगे तो क्या वे भगवान पर कोई प्रभाव छोड़ पाएंगे।
 अध्यात्मिक व्यक्ति आप से कह सकता सकता है कि नाम रूप में क्या रखा है। लेकिन जानकार मानते हैं कि नाम और रूप में हीं सबकुछ है।

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

आओ ज्ञान के दीप जलाएं



दीपावाली पर हर वड्र्ढ हम अपने घर की सफाई करते हैं। दीप जलाते है।  लक्ष्मी-गणेष की पूजा द्वारा धन की देवी लक्ष्मी की कामना करते है। पर क्या इससे हमारे जीवन से अधेंरा मिट जाता है? क्या हमारे घर में सुख- समृद्धि आ जाती है? नहीं न । तो इसका अर्थ है कि हमारी पूजा में कुछ कमी रह गई है। क्योंकि ऐसा नहीं कि जो हम साफ-सफाई पूजा -पाठ करते है उसका कोई महत्व नहीं है। इसका महत्व है लेकिन इस दौरान हमारा सारा ध्यान बाहरी साफ- सफाई पर केन्द्रित रहता है। अन्दर की सफाई को हम भूल जाते है। अन्दर का देवता कहीं उपेक्षित रह जाता है। उसकी पूजा को हम भूल जाते है। उसे हम नहीं पहचान पाते। उसकी सामथ्र्य को हम नहीं जान पाते। हम यह नहीं पता है कि बाहर के सारे देवता इसी अन्दर के देवता से हीं षक्ति पाते है। हम यह नहीं समझ पाते कि यहीं आत्मदेव उन मूत्र्तियों में प्रतिबिम्बित होता है।  जो हमारे पास है खजाना है उसको हम नहीं जानते है। और धन दौलत की खोज में हम दर-दर की ठोकर खाते है। नाना प्रकार उपाय करते हैं। लेकिन फिर भी खाली के खाली रहते है।  अभाव का भाव हमारे अन्दर घर कर जाता है। अभाव का भाव अभाव को जन्म देता है। आओ अपने संकल्प के बल को पहचाने। उसकी महिमा को जाने। संकल्प सर्व समर्थवान है। संकल्प ईष्वर का हीं रूप है। इसी संकल्प का बाहरी सुख-सुविधा दासी है। आओ इस बार की दीवाली में हम ज्ञान के दीप जला दें। यानी अपने आत्मदेव को पहचान लें। फिर हमारे जीवन के कष्ट अपने आप मिटने लगेगें। हममे सकरात्मकता अपने आप आ जाएगी। फिर हमें ग्लास आधा खाली नहीं आधा भरा हुआ दिखाई देगा। फिर हम निर्धन नहीं धनवान दिखाई देंगे। इस प्रकार जो समृद्धि आयेगी वह सबके हित में होगी।

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

पैरेंट्स बच्चों में संस्कार ऐसे लाएं

पैरेंट्स बच्चों में संस्कार ऐसे लाएं
रोज उनको डिस्को घुमाएं
मेहमानों के सामने उनका मजाक उड़ाएं
लोगों को हायर कर
उनकी परवरिष कराएं
मीया-बीवी खूब मौज उड़ाएं
लेट नाइट पार्टी से आएं
नषे में लड़खडाए
सिगरेट के धूएं का हवा छल्ला बनाए
ऐसे अपनी कला देखाएं
उन्हें कार्टून देखने के लिए भी उकसाइए
ऐसे उनमें रचनात्मकता लाएं
टीवी के सामने उन्हें घंटों बैठाएं
कभी- कभी आपस में चीखें चिल्लाएं
माइकल जैक्सन का धर में फोटो लागाए
सुबह-षाम अगरबŸिा दिखाएं
अपनी प्रषंसा खूब गाएं
पड़ोसियों को जलाएं
अपना डफली अलग बजाएं
कभी कभी बाॅक्सिंग में भी हाथ अजमाएं
मुंह-धूधून घर फोर कर आएं
फिल्मी सितारों को रोलमाॅड़ल बनाएं
सुबह षाम उनकी स्तुती गाएं

काॅमीक्स उनको ख्ूब पढाएं
महापुरूषो को आउटडेटेड बताएं
अंग्रेजी में हीं बतीयाएं
हिन्दी बोलने में षरमाएं
बच्चों को दुत्कारें
कुतों को पुचकारें
फिर क्रीम पावडर लगाकर
पार्क में घूमाएं
मेरे प्यारे अभिभावकों ये टिप्स अपनाएं
और बुढ़ापे में लात खाएं।

बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

कश्मीर भारत का अंग है और रहेगा : अन्ना

कश्मीर भारत का अंग है और रहेगा : अन्ना - आश्चर्य है प्रशांत भूषण इतने बड़े वकील होकर नहीं जानते 

आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं आडवाणी-  साभार दिग्विजय सिंह डाट काम
कालेधन पर श्वेत पत्र जारी करे केंद्र सरकार: आडवाणी- जैसा हमने अपने शासन काल में जारी किया था 

चिंतन बैठक में अन्ना ने भूषण से किया किनारा - दोस्त- दोस्त न रहा प्यार- प्यार ना रहा 
बरसेंगी नौकरियां - आसमान से 
लड़कियां प्यार करना छोड़ दें - तो लड़के पागलखाने या शराबखानें मिलेंगे 



शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

अपुन अमेरिका को महाशक्ति नहीं मानेगा

दिल्ली बम बिस्फोट के बाद काफी हो-हल्ला किया गया। मानो और विस्फोटों को सहने की हमारी क्षमता जवाब दे गयी हो। मानो राष्ट् पर बहुत बड़ा संकट आ गया हो। ऐसी हीं बाते विदेषियों में हमारी छवि को खराब करती है। जबकि ऐसे समय में संदेष यह दिया जाना चाहिए था कि इससे बड़े विस्फोटों को सहने में हम समर्थ। इससे बड़े विस्फोटों को सहने को हम तैयार हैं। विस्फोट के बाद यह टीवी पर बहस का मुख्य मुददा हो गया। चाय-पान की दुकानों पर बहस का मुख्य विड्ढय था। कुछ लोगों की नजर में एक साजिष के तहत इसे बहस का मुद्दा बनाया गया। नही तो यह बहस का मुददा था हीं नहीं जी। बम विस्फोट तो दुनिया भर में होता है। पचास-सौ लोग तो रोज ऐसे विस्फोट में मरते हैं। इससे इतना आतंकित होनेवाली क्या बात है? बम बिस्फोट को बहस मुददा बनाया जा रहा है उनलोगों द्वारा जिनके दिन की शुरूआत हीं बुद्वि बिलास द्वारा होती है। कहा यह जा रहा कि अन्ना के आंदोलन के समय से इस वर्ग की कुम्भकरणी निद्रा टूट चुकी है। स्वतंत्रता के बाद इस वर्ग ने लंबी छुट्टी ले ली थी। यह वर्ग रोटी कपडा मकान की चिंता से मुक्त है। इसलिए खाली मन में ऐसे विचार तो चलेगा हीं न। यह वही वर्ग है जो टीवी पर जमकर बहस करता है। अखबारों में लेख लिखता है। सेमिनारों में जमकर भड़ास निकालता है। और चुनावों में सबसे कम मतदान करके लोकतंत्र में अपनी गहरी आस्था भी व्यक्त करता है। इस वर्ग के लिए चुनावों में सक्रिय भाग लेना संकट मोल लेने जैसा है। वैसे अगर इन्हें नेता बनने का मौका दिया जाए तो इन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा। यह वर्ग अपनी निजता का ध्यान तो रखता हीं है दूसरे की निजता का भी ख्याल रखता है। यानी पड़ोसी के भूखा सोने या भूखा मरने पर उसकी कोई खोज खबर नहीं लेता। क्योंकि उसकी मदद कर देने से उसकी प्राइवेसी समाप्त हो जाएगी। वैसे हमारे राजनेताओं का परफॉरमेंस एकदम बेजोड़ रहा है। वह लोगों की आकंक्षाओं पर शतप्रतिशत खरे उतरे हैं। यहीं कारण है कि हमारे समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो यह मानने लगा है कि कोई नृप होय हमें का हानी। और लोकतंत्र के इस महापर्व के प्रति उनके मन में उदासीनता झलकने लगी है। पुलिस का कड़ा कदम नहीं उठाने के पीछे अपना हीं तर्क है। उसका कहना है कि नेता जब कठोर कदम उठाने से हिचक रहे हैं तो हम सबसे तेज बनके क्या करेंगे। आखिर हमारी लगाम तो उन्हीं के हाथों में रहती है। लोगों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कदम नहीं उठाने के चलते हमारी छवि एक नरम राष्ट की बन गई है। ऐसा तर्क उन्हीं लोगों द्वारा दिया जा रहा है जो क्षमा के महत्व को नहीं जानते। मारने वाले से बचाने वाला महान होता है इसलिए हम अफजल गुरू को बचा रहे हैं।। क्षमा करके हम बड़प्पन का परिचय दे रहे हैं। करोड़ो की राषि उसपर खर्च करके हम अपने देष की अतिथिदेवो के परंपरा को मजबूत कर रहे हैं। हमारी संस्कृति में कष्ट सहने को तप कहा गया है। हमें नरम बताने वाले यह नहीं जानते कि कठोर कदम नही उठाने का मुख्य कारण यह है कि हम तप कर रहे हैं। इतने विस्फोंटों के आघात सहने के बाद भी क्या लोगों का संदेह है कि हम कमजोर हैं। हमारे तप यानी विस्फोटों के आघात सहने के कारण हमारी प्रषंसा होनी चाहिए। कष्टों का चुपचाप सहन करना तो हमें मजबूत साबित करता है। प्रतिउत्तर तो कमजोर देता है।। जैसा कि अमेरिका ने दिया था। अमेरिका को भले कोई महाषक्ति मानता हो लेकिन अपुन की नजर में वह एक कमजोर राष्ट् है। पेंटागन पर आक्रमण के बाद तो वह इतना डर गया कि उसे हर जगह ओसामा हीं ओसामा नजर आने लगा। और अन्ततः ओसामा को ठिकाने लगाकर हीं माना। पाकिस्तान को दो टूक सुना दिया कि दुष्मनी एवं दोस्ती में से कोई एक चुन लो। सड़क छाप व्यक्ति को भी आप तमाचा मारियेगा तो बदले में तमाचा मारेगा। जबकि बड़ा व्यक्ति अपना दूसरा गाल आगे बढ़ा देगा। अमेरिकी सुरक्षा एजेन्सियां हमारे मंत्रियो तक के कपड़े उतरवा लेती हैं। क्या यहीं उनका षिष्टाचार है। वे किस बात के सभ्य हैं। अरे सभ्य तो हम हैं जो संसद पर आक्रमण करने वाले तक को भी माफ कर देते हैं। मानवतादवाद के क्षेत्र में भी हमारा कोई षानी नहीं है। हमें क्या कोई मानवाअधिकार का पाठ पढ़ाएगा। सामान्यजन क्या हम आतंकवादियों के मानवाअधिकार भी रक्षा करते हें। देखना हो तो विभिन्न घोटाले के आरोप में जेल जाने वाले कैदियों का देख लो। कैसे वे जेलों में वे सारी सुख-सुविधाओं का भोग कर रहे हैं। गांधी के इस देष में कुछ लोग हिंसा को बढ़ावा देना चाहते हैं। यहीं कारण है कि वे आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कारवाई की मांग करते है। जिसका हमें हर हाल में विरोध करना चाहिए। हमें बताना होगा कि हम अहिंसा छोड़ने वाले नही हैं। हम उनके हृदय परिवर्तन तक इंतजार करेंगे। गांधी भले अंतिम विकल्प के रूप में हिंसा की अनुमती देते हों लेकिन हम नहीं देने वाले हैं जी।

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

सरकार के झुकने का मतलब उसकी कमजोरी नहीं

सरकार की मंषा पर षक मत कीजिए-सिर्फ अन्ना की गिरफतारी और रामदेवजी पर पुलिसिया कारवाई को याद कीजिए/ क्योंकि हम इसकी इजाजत नहीं दे सकते।

प्रधानमंत्री अन्ना टीम के साथ नरमी से पेष आ रहे थेः - वरना गिरफतारी की जगह लाठी डंडा भी बरस सकता था।
सरकार के झुकने का मतलब उसकी कमजोरी नहीं/ संदेह हो तो रामलीला मैदान वाले दृष्य को याद कर लो / बल्कि रामदेवजी के साथ वार्ता की तरह एक रणनीति है।

गेम्स विलेज के ट्रैक पर दौड़ेगी दिल्ली- मतलब टेक्नोलजी बहुत डेवलप हो चुकी है।

एसएसपी ने एसओ को फोन पर कह दिया चुडि़यां पहन लो- बदमाष कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।

किसानों के अल्टीमेटम के बावजूद बिल्डरों की साइटों पर हुआ कंस्ट्क्षन- जय जवान जय किसान।

बदमाषों के सामने तमाषबीनों को नहीं हुई आगे जाने की हिम्मत- मैं अन्ना हूं।

विधानसभा में गालीगलौज, हंगामा -लोकतंत्र की गरिमा के लिए जरूरी था।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

चुनावी सीजन में विशेष ऑफर

अगर आपके पास टीवी नहीं है और आप टीवी खरीदने का इरादा रखते हैं तो फिलहाल आप अपना इरादा टाल दीजिए। कारण कि हो सकता है कि टीवी आपको मुफ्त मिल जाए। जी हां उत्तर प्रदेष चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दल बम्पर सेल लेकर आ रहे हैं । जहां आपको किसी भी उत्पाद पर षत प्रतिषत तक की छूट मिल सकती है। यानी टीवी, फ्रीज, लैपटॉप आदि बिल्कुल फ्री। तमिलनाडु में बम्पर सेल के मिले लाभ को देखते हुए। राजनीतिक दल विषेड्ढ उत्साहित हैं। पांच साल से जमे स्टॉक को इस चुनाव में निकाल देना चाहते है। विभिन्न कम्पनियां यानी विभिन्न दल इस चुनाव में लाभ कमाने के लिए किसी स्तर पर जाने को तैयार हैं। इससे लाभ मतदाता को मिलना तय है। लेकिन लाभ किस स्तर तक मिलेगा अभी यह कहना जल्दीबाजी होगी। हो सकता है यह लालीपॉप तक ही रहें। लेकिन आप अभी से आसमान की ओर मुंह बाये खड़े रहें कभी भी कुछ भी टपक सकता है। चाहे जो भी हो सेल के निर्धारण में विभिन्न दल अभी से हीं लग गये हैं। विभिन्न दलों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा भी देखने को मिल सकती है। दूसरे दलों को मात देने के लिए एक से बढ़कर एक ऑफर दिए जाने की संभावना है। छूट देने में दूसरे दल से पीछे हो जाने के भय से राजनीति दलों के बीच कड़ी प्रतिस्र्पधा है। विष्लेड्ढकों के राय में इस बार काफी कड़ा मुकाबला होगा। बाजार विषेड्ढज्ञों ने तमिलनाडु के अनुभवों को देखते हुए दषहरा एवं दीपावली में लोगों को संभलकर खरीदारी करने को कहा है। एक प्रमुख पार्टी के सीनियर नेता से जब हमने जानना चाहा कि आने वाले चुनाव में आपकी पार्टी की क्या मुख्य रणनीति होगी तो उन्होंने कहा कि थोक के भाव में सपने बेचना । उसके लिए विषेड्ढ पैकेजिंग की जाएगी यानी सपनों के महत्व को बताती आर्कड्ढक पंच लाइनें। इसके लिए हम मार्केटिंग के पूरे सिद्वान्त को अपनाया जाएगा। लोगों के लिए सपने का सबसे बड़ा महत्व है। और मेरी पार्टी इसे खुब समझती है। उनका तर्क था कि जनता परिश्रम तो खुब करती है। लेकिन छोटे सपने के चलते पिछुड़ जाती है। इसके विपरीत नेता एवं अधिकारी कम काम करते हैं लेकिन बड़े सपने देखते हैं। यहीं कारण है उनके तो कोठी और बंगले खड़े हो जाते हैं। उनका कहना है उत्तर प्रदेष चुनाव में मेरी पार्टी का स्लोगन होगा बड़ा बनने के लिए बड़े सपने देखो। और उसे पूरा करने के लिए घर द्वार तक बेंचो। जब मैने एक दूसरे दल के बड़े नेता से सपनों के बारे पूछा तो उनका कहना था कि देखिए जिस प्रकार कोई दल आज आरक्षण के जाप को नहीं छोड़ सकता उसी प्रकार राजनीतिक दल सपने बेंचना भी नहीं छोड़ सकते। चुनावी घोड्ढणा पत्र में हम तारे तोड़कर लाने का वादा करत हैं और जनता उसपर विष्वास कर लेती है। यानी जनता भी कहीं न कहीं सपने के महत्व को जानती है। उनका कहना था कि आगामी उत्तर प्रदेष चुनाव में जो पार्टी सपना बेचने में जितना सफल होगी। उसकी सफलता की दर भी उतना हीं अधिक होगी। इसलिए हमलोग आक्रामक मार्केटिंग के लिए प्रफेषनलों की भी मदद ले रहे हैं। जब मैंने तीसरे दल के बड़े नेता से पूछा कि क्या आपभी सपने बेंचने में यकीन रखते हैं । तो उन्होंने मुझसे हीं प्रष्न कर डाला क्यों आपको कोई आपत्ति है क्या। क्या आप चाहते हैं कि जनता को सपने देखने को भी न मिले। निष्कड्र्ढ यह है कि आगामी यूपी चुनाव में सभी पार्टियां लोगों को बड़ा सपने दिखाएगी और अपना बेड़ा पार लगाएगी।

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

रामदेव के गले में पत्थर बांध कर डुबा दो

रामदेव के गले में पत्थर बांध कर डुबा दोः दिग्विजय- मतलब रामदेवजी सही कहते थे कि सरकार मुझे रामलीला मैदान में मारना चाहती थी। रेसिंग हमारे देष का दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल बन जायेगा- अगर पैरेंटस अपने लाड़लों को स्पीड़ बाइक से उड़ने की इजाजत देते रहे। मध्यावधि चुनाव के लिए रहें तैयार: आडवाणी- हां मैं और इंतजार नहीं कर सकता। रावण अंकल की जगह अब रावण भैया- क्योंकि रावण सबके अंदर अभी जवान है। ससुराल नहीं जाऊंगा जेल चला जाऊंगा- क्योंकि बीवी से आंख नहीं मिला पाता हूं। हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए- चाहे किसी का घर हीं क्यों न जल जाए। खिलाडि़यों को चाहिए पैसा, इज्जत और ऑफिसरों से सुरक्षा- हां ऑफिसर अक्सर उनपर फिक्सिंग का आरोप लगाकर तंग करते हैं। यहीं है अपना स्वर्णीम हिंदुस्तान - जहां घोटालेबाज हैं महान। मैट्कि फेल हैं पांडिचेरी के षिक्षामंत्री- इटस हैपेन ओनली इन इंडिया। घूस ना दें उद्योगपति: ममता - हां आमजनों की बात कुछ और है। अब सोनिया के दामाद का राज खोलूंगाः स्वामी- क्यों माया-मोह में पड़ रहे हो! बीस साल बाद ममता गईं सिनेमा घर- उद्घाटन करने। दूसरे दौर में पहुंचे मनोज कुमार- मतलब की पहले दौर में समय पर नहीं पहुंचे थे। दोस्ती बढ़ायेगी भाजपा- ताकि दोस्त से ज्यादा दुश्मन न हो जाएं।

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

स्वर्णीम युग लौट रहा है

जबसे मैं स्पेषल एयरक्राफट में सैंडिल की हवाई यात्रा की बात सूना हूं। मानो मेरे उम्मीदों को पंख लग गए हैं। मन सुनहरे ख्वाब बुनने लगा है। अब मुझे भी लगने लगा हे कि मेरे भी ख्वाब एक दिन पूरे होगें। कुछ लोगों को सैंडि़ल के हवाई यात्रा पर आपत्ती हो सकती है। लेकिन मुझे नहीं। क्योंकि मुझमें इसमें संभावना दिख रही है। लाखों के ख्वाबों को पूरा होने के। इसके सकारात्मक पक्ष को देखने वाले इस तरह सोंचते हैं। स्पेशल एयर का्रफ्ट में सैंडिल के सफर का अर्थ है कि देष में इतनी खुषहाली आ गई है कि जड़ जगत तक को हवाई यात्रा का मौका मिल रहा है। यानी देष सचमुच तरक्की कर रहा है। इंडिया सायनिंग कर रहा है। गरीब- अमीर की खाई मिट चुकी है। भारत पुरी तरह इंडिया में बदल चुका है। गरीबों की बस्तियां आबाद हो चुकी है। बस कुछ लोग षौकिया भूखे पेट सो रहे हैं। खुली आसमान में सड़कों पर सोकर डायटींग कर रहे है । जब मैं आकाष में उड़ते हवाई जहाज को देखता हूं तो सोंचता हूं कब होंगे ख्वाब मेरे पूरे। फिर दिल के किसी कोने से आवाज आती है कि तू ट्रेन के स्पेषल क्लास में तो यात्रा कर नहीं सकता। फिर हवाई जहाज में उड़ने का ख्वाब देखना क्या ठीक होगा। हवाई जहाज में यात्रा करने वाली सैंडिल ने भी मुझे चेताया औकात में रहकर ख्वाब देखो। बीवी की पूरी डिमांड तो तुम पूरी कर नहीं सकते और चले हो। हवाई जहाज पर उड़ने का ख्वाब देखने। सच बताऊ मेरी स्पेषल क्या जनरल में भी हवाई यात्रा करने की औकात नहीं। ट्रेन की द्वितीय श्रेणी में मजबूरन में यात्रा करता हूं। अगर तृतीय क्लास होता वहीं सीट पाने का मेरा प्रयास होता। सैंडिल की स्पेषल जहाज में यात्रा के बाद सैंडिल और जूते में जुबानी जंग भी षुरू हो गई है। जूते कह रहे हैं अभी उनका वर्चस्व बना हुआ। वहीं सैंडिल कह रही है कि ख्वाब देखना छोड़ो मैं स्पेषल विमान में यात्रा करके आई हूं। मैं हवाई जहाज में आ जा रही हूं। मुझे बुलाने स्पेषल विमान में भेंजा जा रहा है। भाई मैं तो भाग्यवाद में विष्वास करने वाला ठहरा। मेरी सैंडि़ल के भाग्य पर जलन नहीं हुआ बल्कि मैं अपने भाग्य का कोस रहा हूं। और अपने भाग्योदय के लिए पूजा-पाठ कर रहा हूं। मैं स्पेषल एयर का्रफ्ट में सैंडिल की यात्रा को देष में स्वर्ण युग के लौटने के रूप में भी देख रहा हूं। यानी एक बार फिर देष सोने की चिडि़या कहलाएगा। और एक बार फिर राजाओं महाराजाओं का युग आयेगा। और वे अपने प्रजाओं पर उसी प्रकार स्नेह बरसायेंगे। जैसे कि वे पहले जमाने बरसाते थे। वैसे सैडिल को हवाई यात्रा का सुख देने वाला पर्याप्त दयालु होगा। जड़-जगत के प्रति उसका प्रेम देखते हीं बनता है। मुझे विष्वास है कि एक दिन मुझपर भी उसको दया आएगी। एक दिन मुझपर भी उसका स्नेह बरसेगा। उत्तर प्र्रदेष चुनाव के दौरान मैं विषेड्ढ रूप से आषान्वित हूं।

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

पाकिस्तानी नेताओं ने सेना को पूरा समर्थन दिया

निलंबित एडीजी जैन बोले, मैं फरार नहीं- बल्कि तीर्थयात्रा पर हूं।

पाकिस्तानी नेताओं ने सेना को पूरा समर्थन दिया- और बदले में समर्थन की आषा रख रहे हैं।

छत्तीसगढ़ सीएम की गड़करी ने की तारिफ- पावर बैंलेंस के लिए यह जरूरी था।

याददाष्त कमजोर और गिनती भूल गया हूं: चिदंबरम- हां ऐसे समय ऐसा होता है।

हमारे सांसद बहुत सुस्त हैं: अरूणा राय- जब सुस्त होने पर इतना इतिहास रच रहे हैं तो तेज होने पर न जाने क्या कर देंगे।

गुजरात के मुख्यमंत्री को विनय कटियार ने दे डाली वहीं रह कर काम करने की सलाह- क्योंकि यहां आने पर षीतयुद्व प्रत्यक्ष में बदल सकता है।

कार्यकारणी में नेताओं ने बताई अपनी-अपनी पसंद- कि भाजपा कि सरकार बनने पर उन्हें कौन- कौन सा पद चाहिए।

तिहाड़ जेल में सहयोगियों से मिलने जा रहे हैं पाटियों के वरिष्ठ नेता- सच है जेल जाने की भी अपनी एक गरीमा है।
आडवाणी के रथ में नीतिष का घोड़ा- जो कभी भी बन सकता है भगोड़ा।
कटरीना करेंगी एमसीडी में टीचर की नौकरी- फिल्मों में काम नहीं मिल रहा होगा।

शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

आडवाणी एवं मोदी में मतभेद

कारों को देना पड़ता है टेस्ट- जनसंख्या अधिक होने पर बेरोजगारी तो बढ़ेगी हीं न।

राहुल की सेंचुरी से जीती सीपीएस अकैडमी- क्रिकेट भी खेलने लगे क्या?

आनंद विहार बस स्टाॅपःबीच सड़क पर रूकती है बस- यात्री दोनो ओर से चढ़ते होंगे।

चुप रहिए यात्रा पीएम पद के लिए नहींः गड़करी- वरना मोदीजी भी निकाल देंगे।

गंाधी और रोजगार- विरोधी क्योंकि गांधी जोड़-तोड़ के खिलाफ थे।

अमेरिका दबाव न बढ़ाये:पाक -वरना हमारे प्रधानमंत्री एक-दो बार और बार चीन की यात्रा कर आएंगे।

आडवाणी एवं मोदी में मतभेद-पार्टी विद् डिफरेंस।

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

अमेरिका एवं पाकिस्तान का प्यार

यार बड़बोलन अमेरिका एवं पाकिस्तान का प्यार तो इन दिनों देखते हीं बन रहा है।

क्या कुछ खास बात हुई है क्या?
हां जरदारी ओबामा से मोबाइल पर गा रहे थे तुम मुझे यूं भूला न पाओगे।

बुधवार, 28 सितंबर 2011

मैं रथ पर क्यों नहीं सवार हो सकता

पहले के जमाने राजा- महाराजा रथ की सवारी करते थे। संभ्रांत लोगों की भी सवारी का मुख्य साधन रथ था। आज के राजा-महाराजा भी उस षाही परम्परा को कायम रखे हुएं हैं। और सदा नही ंतो कभी-कभी रथ पर सवार होकर अपनी षौक पूरा कर हीं ले रहे हैं। जब साधु-सन्यासी तक रथ पर सवारी का मोह त्याग नहीं पा रहे हैं तो मैं तो ठहरा सांसारिक व्यक्ति। मेरे अंदर भी रथ पर सवार होने की तीव्र इच्छा है। हवाई जहाज पर सवार होते-होते मन भर गया है। उसमें वैसा आकड्र्ढण नहीं रहा। क्योंकि वह लोगों का ध्यान खीचने में असमर्थ रहा है। आदमी फुर्र सा यहां से वहां पहुंच जाता है और लोग जान हीं नहीं पाते। टिकट दिखाना पड़ता है।
लेकिन मेरे रथ पे सवार होने की बात से कुछ लोगों को कुछ-कुछ होने लगा है। उनका कहना है कि रथ पर सवार होने के लिए मेरे पास पात्रता नहीं है। इसपर मेरा कहना है कि क्या और लोग जो रथ पर सवार हो रहे हैं वो आपको सर्टीफिकेट दे रहे हैं। जो आप मुझसे आषा रखते हैं। ऐसा नहीं कि केवल मेरा हीं रथ निकल रहा हो। सौ पचास रथ में मेरा रथ भी निकल जाएगा तो कौन सा आसमान टूट पड़ेगा।
आखिर बाप-दादा ने किस लिए जमीन-जायदाद छोड़ी है। मेरे सुख के लिए हीं न। मेरा सुख रथ में सवार होने में है। मैंने जायज-नजायज तरीके से धन किस लिए कमाया है।

आखिर मेेरे पास किस चीज की कमी है कि मैं रथ पर सवार नहीं हो सकता। मेरे पास धन है दौलत है । नौकर है चाकर है। मैं भी लोगों को सभा स्थल पर लाने के लिए गाडि़यों की व्यवस्था करवा सकता हूं। मेरी राजनीतिक योजना पाइप लाईन में हीं सही लेकिन है। मेरे पास भी चेले- चमचे हैं। मैं भी लोगों को पकवान खिला सकता हूं। मैं भी नोट बंटवा सकता हूं। अगर लोगों के पास समाज को कुछ देने के लिए है तो मेरे पास भी है। मेरा भी जीवन लोगों के भाग्योदय पर गहरा रिसर्च करने में बीता है। मेरे बताए रास्ते पर चलकर लोग रातो-रात अपना किस्मत चमका सकते हैं। मेरा भी रथ लोगों के जीवन में रंग लाएगा तरंग लाएगा। बेरोजगारों को रोजगार दिलाएगा। कई कार्यकर्ताओं का किस्मत चमकाएगा। उन्हें भीड़ जुटाने का अवसर दिलाएगा।
मैं भी आरक्षण का हिमायती हूं। मैं भी इसे जातिगत एवं वर्गगत आधार पर लागू करना चाहता हूं। क्योंकि आर्थिक आधार पर लागू करने से सही लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा। मेरे पास भी भ्रष्टाचार मिटाने के फाॅर्मूले हैं। पाकिस्तान को ठीकाने लगाने के मंसूबे हैं।
मैं भी अच्छा वक्ता हूं। मैं भी विद्वता दिखाऊंगा। जनता को रिझाउंगा। हास्य-विनोद से लोगों को गुदगुदाऊंगा। वादों की डोज पिलाऊंगा। कम से कम महीने दिन रोज पिलाऊंगा। कल्पना लोक की सैर कराऊंगा।
आखिर सब अपनी मन की हसरत पूरी कर रहे हैं। तो मैं क्यों नहीं कर सकता। सब अपने मन का भड़ास निकालकर स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकता। मेरे भी रथयात्रा के दूरगामी परिणाम होने जा रहा है। मेरी रथयात्रा भी इतिहास बनने जा रही है। मेरे रथ को कोई रोककर इतिहास रच सकता है।

चिदंबरम का नेटवर्क बिजी

गवर्नर ने मांगा मोदी से हिसाब- क्योंकि वे विकास कार्यों में सरकारी धन पानी की तरह बहा रहे थे।

चिदंबरम का नेटवर्क बिजी- उनकी पूछ जो बढ़ गई है।


इस्तीफे को तैयारः चिदंबरम- क्योंकि तेरे दर से हम सम्मानपूर्वक जाना चाहते हैं और तेरी गलियों में न रखेंगे कदम गाना चाहते हैं।

चिदंबरम अहम सहयोगी हैं- वित्तमंत्रालय द्वारा पीएमओ को भेंजा गया नोंट तो सिर्फ मजाक था।

रिकार्ड में दर्ज है महबूबा मुफ्ती का सच- मतलब कि इसके पहले भी वो सच बोल चुकी हैं।

जाॅन करेंगे अखाड़े में प्रैक्टिस- पहलवानी करनी होगी।

प्रधानमंत्री पंचायत करेंगे- और फैसला सोनियां जी सुनाएंगी।

अरबिन्द केजरीवाल की बैटिंग


प्रषांत भूड्ढण के उस बयान पर आपका क्या कहना है जिसमें उन्होंने कष्मीर की आजादी को लेकर जनमत संग्रह करवाने की बात की थी।
उत्तरः माना कि सरकार एवं अन्ना की टीम के बीच 20-20 खेला जा रहा है। जिसमें अन्ना की टीम ने लगातार अच्छा प्रदर्षन किया है। लेकिन ये उनका अति उत्साह में खेला गया षाॅट है जो उन्हें कैच भी करा सकता था। माना कि 20-20 के मैच में आपको तेजी से रन बनाने पड़ते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं आप गेंद की नेचर पर एकदम ध्यान न दें। ऐसा करने पर सरकार के फील्डर उन्हें कभी भी लपक सकते है। उनकी फील्डिंग अबतक लाजबाब रही है। मेरा उनको सलाह है कि षाॅट का चयन सावधानी से करें। इस तरह के षाॅट किरण बेदी ने भी खेला था और आउट होते-होते बचीं थी। हां अरबिन्द केजरीवाल ने अबतक जरूर पिच के हिसाब से बैटिंग की है।

सोमवार, 26 सितंबर 2011

प्रणव बोले, 2जी पर नहीं बोलूंगा

प्रणव बोले, 2जी पर नहीं बोलूंगा- किसको सुनाएं कौन सुनेगा इसलिए चुप रहते हैं।

आठ साल के कार्यकाल में चौथी बार जन्मदिन विदेष में मनाएंगे मनमोहन- वह भी अमेरिकी फिजूलखर्ची का परिणाम जानने के बाद भी।

पीएम से पूछताछ कर सकती है पीएसीः जोषी- हां यह प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुकूल होगा।

महाराष्ट्र में हर कोई लूट रहा है किसानों को- मतलब की वे सबसे अधिक धनवान हैं।

छात्रा से छेड़छाड़ पर टीचर सस्पेंड- गुरूदेवो भव।

हिमाचल में षिक्षकों ने दिया अल्टीमेटम- यानी अनुषासन का पाठ पढ़ाते-पढ़ाते वे अनुषासनहीनता पर उतर आए ( क्रिया तथा प्रतिक्रिया बराबर एवं विपरीत दिषा में होती है तथा दो भिन्न पिंडों पर कार्य करती है।)

पंद्रह मछुआरों को बंधक बनाया पाक ने- बहादुरी का मेडल के लिए।

गरीबों के लिए षहरों में डोरमेटरी बनाएगी सरकार- जिसमें ठहरने पर वे अपना घर का सपना भूल जाएंगे।

रविवार, 18 सितंबर 2011

बेटा पापा पर नजर रखना

बेटा पापा पर नजर रखना
अन्ना के आंदोलन ने देष पर उतना प्रभाव नहीं छोड़ा था जितना सज्जन सिंह जी की षादी ने छोड़ा है। सज्जन सिंह की षादी के बाद देष में गृह युद्ध होना लाजीमी था। भारतीय परिवार आज सज्जन सिंह की बगावत का सामना कर रहे हैं। सबकुछ अन्दर- अन्दर चल रहा है। कहीं बगावट की षुगबुगाहट है तो कहीं उसको नियंत्रित करने के उपाय सोचे जा रहे हैं। तोड़ फोड़ की संभावनाएं तलाषते हुए जगह जगह घर फोड़ दल के सदस्य भी घुम रहे हैं। लफुआ एंड कम्पनी भी आग में घी डालने का मौका तलाष रही है और चटखारे लेकर चर्चा में मषगूल है। टीवी वाले अन्ना हजारे से पूछ रहे हैं कि सज्जन की षादी का प्रभाव क्या आपके अनषन से कम रहा। माताएं बेटे को हिदायत दे रहीं बेटे अपने पापा पे थोड़ी नजर रखना। इन दिनों वे बड़ी बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं। माल में सनेमा देखने जा रहे हैं। अगर तुम मिल जाओ जमाना छोड़ देंगे गा रहे हैं। फेसबुक पर घंटों बिता रहे हंै। ये सब टीवी देखने का नतीजा है। बेटा अगर तुमने परिवार के सदस्यों को टीवी देखने से नहीं रोका तो बगावत के स्वर और सुनाई देगंे। बेटा अपने पापा के टीवी देखने पर एकदम रोक लगा देना। क्योंकि वे चटखारे लेकर सज्जन सिंह को देखते हैं फिर मुझे निरेखते हैं। वैसे मैंने अपनी योजना बना ली है। धारा 144 लागू कर दिया गया है। यानी उन्हें किसी नारी के साथ देखे जाने पर लाठी चार्ज का आदेष दे दिया गया है। मैने सोच लिया है कि अगर मेरे पति ने बगावत की तो उस सज्जनवा को छोड़ूंगी नहीं। यह सब ऊ बुढवा सज्जनवा के चलते हो रहा है नही ंतो मेरा मरद ऐसा नहीं था। गाली को भी चुपचाप सहन कर जाता था। लेकिन सज्जनवा के षादी करते हीं वह तन कर चलने लगा है। वैसे तुम चिंता न करो मैंने उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए पूरा जाल बिछा दिया। तुम्हारें मामा एवं मामी को खुफिया विभाग का हेड बनाई हूं। समय-समय पर मैं खुद उच्चस्तरीय बैठक कर आवष्यक दिषा र्निदेष दे रही हूं। मैंने बेटे और नाती पोते को भी बुला लिया लिया है ताकि तुम्हारे पिता को बुढ़ापे एहसास होता रहे । वे नानाजी दादाजी कहेंगे तो उन्हें एहसास होगा कि वे जवान नहीं रहे।
इसके अलावे तुम्हारे पिताजी पर निगरानी रखने के लिए पाइवेट डिटेक्टिव भी मदद ले रही हूं। सबके सब अपने-अपने ढंग से चैबीसों घंटे निगरानी रख रहे हैं।
बेटा तुम तो जानते हो मेरी चिंता का कारण मेरे एवं उनके बीच कई वड्र्ढों से जारी षीत युद्ध है। कहीं ऐसा न हो उचित समय देखकर विरोध का बिगूल फंूक दें। और हमसब मुंह ताकते रह जाएं।
बेटे अगर उन्होंने सज्जन सिंह की तरह षादी रचा ली तुम सब को घर से निकलना मुष्किल हो जाएगा और मुझे षौतन से निपटना कठीन हो जाएगा। तख्ता पलट रोकने के लिए जरूरी कदम उठाना आवष्यक है। कारण कि नई सरकार के गठन के बाद कैसा फेर बदल होगा यह कहना मुष्किल है। किसको देष निकालने की सजा सुनाई जाएगी। किसको युवराज पद मिलेगा यह कहना एकदम जल्दीबाजी होगी। कुछ भी हो सज्जन सिंह के बगावत को रोकना होगा बेटा।

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

पेट्ोल ने पाॅकेट में लगाई आग

अब फटा पेट्ोल बम- तभी तो दाम बढ़ाकर सरकार कर रही है लोगों का गम कम।

अब तो पाई-पाई का हिसाब रखना पड़ेगा- इतनी कृपणता किस लिए।

पेट्ोल ने पाॅकेट में लगाई आग- फिर तो दाम बढ़ाकर सरकार ने ठीक हीं किया।

काम पर लौट आईं सोनिया- वरना अनुषासनात्मक कार्रवाई हो
सकती थी।

महंगाई तेरे कितने नाम- सचमुच भूल गया भगवान।

कई मंत्री दो साल में गरीब- मतलब देष की तरक्की करने की बात मात्र छलावा है/ क्या देष इसी तरह तरक्की कर रहा है।

षादी और बर्बादी में क्या अन्तर है ?

प्रष्नः षादी और बर्बादी में क्या अन्तर है ?
उत्तरः वस्तुतः दोनों एक हीं है। माया के चलते यह अलग-अलग दिखाई देता है। ब्रम्ह के समान इसे विभिन्न नामों से जानते हैं। जैसे ज्ञानी जानते हैं कि ब्रम्ह और माया दो नहीं बल्कि ब्रम्ह की हीं षक्ति माया है। ठीक इसी प्रकार षादी और बर्बादी में कोई खास अंतर नहीं है। षादी का हीं अगला चरण बर्बादी है। इसी से ज्ञानीजन षादी से दूर रहते हैं। समस्याओं से भागकर साधना में लीन रहते हैं।

प्रष्नः अगर मैं आपसे कहूं कि मुझे आपसे प्यार हो गया है तो इसे आप क्या कहें।
उत्तरः आपको जरूर कोई गलतफहमी हुई है तभी आप हवाई जगह की जगह पैषेन्जर मेल चून रही हैं। कारण कि यह मेल द्वारिका की जगह सूदामा नगरी जा जाती है। चेहरा पर मत आइए दिल सच्चा है चेहरा झूठा। वैसे आप काफी समझदार हैं समझ गई होंगी। समझदार के लिए इषारा हीं काफी है।

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

बालों में स्टाइल कैसे लाएं ?



प्रष्नः बालों में स्टाइल कैसे लाएं ?
उत्तरः तीस दिनों में तीस कलर लगाएं।
जितना हो सके उसे बढ़ाएं।
और लहराके जुल्फें चमन में न जाना कोई गाए मंद-मंद मुस्कुराएं।

प्रष्न- मेरे पति बहुत षर्मीलें हैं क्या करें।
उत्तरः आपने यह नहीं लिखा हैं वे कितने हद तक षर्मीले हैं। वैसे मेरी आपको सलाह है कि उनपर नजर रखें। क्योंकि यह भी हो सकता है कि आपके सामने षर्मीलापन दिखा रहे हों और चक्कर कहीं और चला रहे हों। अगर वे सचमुच षर्मीले हैं तो इसका उपयोग आप अपने बजट नियंत्रण में करें। जैसे कि अगर कोई आपसे षिकायत करे कि आपके यहां से कोई मेरे यहां पार्टी में नहीं आया। तो आप कहें आपतो भाई साहब जानते हैं मेरे पति कितने षर्मीले हैं।

पार्टी अभी किसी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में

पार्टी अभी किसी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोड्ढित नहीं करेगीः गडकरी - क्योंकि क्या पता मुझे भी पूर्व भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह जैसा दूल्हा बनने की इच्छा हो जाये।

अमेरिकी रिपोर्ट गुजराती लोगों के लिए एक और सम्मान- इसके पहले वाला सम्मान मुझे वीजा देने से इनकार करना था।

मोदी के उपवास के समय जेटली होंगे साथ- खाई है रे हमने कसम संग रहने की।

विधायकों ने आधी विधायक निधि भी नहीं खर्च की- क्योंकि वे बचत के महत्व का जानते हैं/ क्योंकि अमेरिकियों की तरह देष को उन्हें मंदी में नहीं ले जाना है।

चैंपियनों को मात्र 25-25 हजार- क्योंकि हम नहीं चाहते कि क्रिकेट खिलाडि़यों की तरह वह दौलत के नषा में मस्त हो जाएं और जीतने से पहले हीं पस्त हो जाएं।

हंगामें के बाद जागा खेल मंत्रालय- षोरगुल सुनकर नीद टूट गई होगी।

भारतीय सीमा में घुसे चीनी सैनिक, पुराने बंकरों को किया नष्ट- बंकरों का पुर्ननिर्माण कर रहे होंगे।

होंडा सिटी में सवार होकर की थी लूट- यानी लूटने इज्जत से आये थे।

बुधवार, 14 सितंबर 2011

पहले प्यार को नहीं भूला पा रहा हूं।


प्रष्नः मैं अपने पहले प्यार को नहीं भूला पा रहा हूं।
उत्तरः उसके प्रेमी को याद करें। अगर केवल आपहीं प्रेमी रहे हों तो उसके गालियों के बारिष को याद करें। अगर फिर भी बात न बने तो उसके फरमाइषों को याद करें।
मेरी सलाहों पर अमल करके आप उसे भूल जाएंगे नही ंतो राम-नाम सत्य कर जाएंगे।

स्वदेष वापसी पर हाॅकी टीम का जोरदार स्वागत

स्वदेष वापसी पर हाॅकी टीम का जोरदार स्वागत- 25-25 हजार की प्रोत्साहन राषि देकर।

अमर सिंह के लिए नियम-कानून ताक पर- यानी कानून अपना काम कर रहा है।

सख्त है तिलक नगर मार्केट की सुरक्षा-व्यवस्था- सिर्फ एक-दो महीने के लिए।

दिल्ली को नहीं है विकास की दरकार- क्योंकि भगवान हैं इसके तारनहार।

माओवाद आतंकवाद से बड़ा दुष्मन- चिदंबरमः काफी रिसर्च के बाद यह बात मुझे मालूम हुई है।

अमेरिका ने बांधी मोदी की तारीफों के पुल- लेकिन वीजा देने के समय जाएगा भूल।

आज एजेंट बता रहे हैं, कल पांव छूते थे- क्योंकि पहले आप प्रतिद्वन्दी बनकर नहीं आते थे।

बाबा रामदेव ने दिया राखी के प्रपोजल का जवाब- कि षादी करके मुझे नहीं होना है बरबाद।

रेल मंत्री के अनुसार तमिलनाडु रेल हादसे की वजह मानवीय भूल- और भाई मानवीय भूल को तो रोका नहीं जा सकती है न।

अमर सिंह के बारे में सवाल करते हीं बिग बी के मुंह पर जड़ गया ताला- कौन था जड़नेवाला।

कामयाबी का कोई मंत्र नहीं - हां जोड़- तोड़ से संभावनाए जरूर बढ जाती है।


देष की षांति, एकता के लिए षनिवार से तीन दिन का उपवास करेंगे मोदी- अन्ना हजारे ने उपवास से पूरे देष को हिला दिया तो क्या मैं जांचकत्ताओं को भी नहीं हिला सकता।

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

आडवाणी की रथयात्रा पर भाजपा में मंथन

हमारी छवि एक नरम देष की बन गई है- इतने विस्फोंटों के आघात सहने के बाद भी क्या?

अब आर्किटेक्ट हीं पास कर देगा नक्षा- यानी बाबुओं का अब नहीं भरेगा बक्सा।


आडवाणी की रथयात्रा पर भाजपा में मंथन- कि अब सेकेंड जनरेषन लीडरषीप का क्या होगा।

भारत-पाक के खिलाड़ी आपस में खेलेंः आडवाणी- बाहर जाकर बदनामी करवाना ठीक नहीं है।

रोमांच के चरम पर मैच टाई- यानी बच गई जगहंसाई।

स्वामी ने करूणानीधि की आलोचना- तब तो उनकी साधना व्यर्थ है।

आपके खाने में नमक घटाएगी सरकार- मतलब सरकार एकदम तानाषाही पर उतर आई है।

थिंक पाॅजिटीव- जैसे कि ये बम विस्फोट हमारा क्या बिगाड़ लेंगे।

पब्लिक ले रही है बदमाषों से मोर्चा- पुलिस के जवानों ने है आराम करने को सोचा।

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

चार्जषीट में नजर आएंगे देवानंद

चार्जषीट में नजर आएंगे देवानंद- क्यों कोई अपराध किया है क्या।

जूझने का जज्बा-भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने वालों में देखा जा सकता है।

जाॅन का नाम लेना पसंद नहीं बिपाषा को -क्यों नफरत हो गई है क्या ?

एयर इंडिया ने विमान खरीद में दिखाई हड़बडी- खरीदना बहुत जरूरी होगा भाई।

आम लोगों को नहीं मिली राहत- कब मिली थी ?

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

धमकी देकर किया धमाका

धमकी देकर किया धमाका- और सबको पता है कौन है इसका आका।

क्या हम अब भी सबक लेंगे- क्या पहले वाले विस्फोटों से लिए थे।

खुष हो जाइए, सस्ता हो सकता है खाना-पीना- दिल को बहलाने को गालीब ये खयाल अच्छा है।

टीम इंडिया लस्त-पस्त- और खेल रही है होकर मस्त।

इंग्लैड दौरे के लिए तैयार नहीं थी टीमः श्रीकांत- फिर किसने खेलने को भेंज दिया।

जो चाहे लड़ सकता है मेरे खिलाफ चुनाव- पर मेरी जमानत जब्त होने पर जमानत राषि देनी होगी जनाब।

थाली से गायब हो गई न्यूट्ीषिन डाइट- किसी ने चुरा लिया होगा।

बुधवार, 7 सितंबर 2011

टीचर्स डे पर काॅलेज में फायरींग

वो ट्क ड्ाइवर नहीं लुटेरा था- यह ज्ञान लुट जाने के बाद प्राप्त हुआ न।

क्या यह भगवान राम पसंद करेंगे- रावण तो करेगा न।

ना कहना भी सीखें- और षुरूआत करें पहले अपने कर्तव्यों से ना कह कर।

केंद्र और प्रदेष सरकार धोखेबाज- फिर किस पर करें हम बोलो नाज।

सवाल है इतने सम्मान का हम क्या करेंगे- व्यापार करेंगे।

टीचर्स डे पर काॅलेज में फायरींग- पर तोपों की सलामी बिना सम्मान अधूरा रह
गया न।

नेषनल हाईवे पर दस घंटे तक रेंगती रहीं गाडि़यां- रेंगने का मैराथन हो रहा होगा।

सोमवार, 5 सितंबर 2011

पुत्र का पत्र पिता के नाम

हेलो डैड
हाय
आज मुझे भी महान विभूतियों की तरह से जेल से आपको पत्र लिखने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आषा है आप मुझपर गौरवान्वित होंगे। पापा ये ऐतिहासक छड़ विरले को मिलता है। जैसा कि पं जवाहर लाल को मिला था। जब उन्होंने अपनी पुत्री को जेल से पत्र लिखा था। लेकिन पापा मैं भूल गया था कि आप पूराने जमाने के व्यक्ति हैं। आपको मेरे जेल जाने से सुख की जगह दुख भी हो सकता है। लेकिन पापा अगर आप अपने दिमाग पर जोर डालें ंतो आपको मालूम होगा जेल जाना षर्म की नहीं गर्व की बात है। क्या भगत सिंह जेल नहीं गये थे। क्या महात्मा गांधी जेल नहीं गये थे। क्या आज के गांधी अन्ना जेल नहीं गये थे। आपने अन्ना के कथन सुना होगा कि जेल तो वीरों का भूषण है। फिर क्यों रो धोकर मुझे आप खरदूड्ढण बनाने पर तुले हुए हैं। क्यों आप अपने बेटे के महत्व को कम करके आंक रहे हैं। क्या आप अपने बेटे से प्यार नहीं करते। आप कहेंगे कि वे सब महान उद्देष्य के लिए जेल गये थे न कि अपने संकीर्ण स्वार्थ के लिए। लेकिन पापा आज मैं हीं नहीं केवल भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हूं। आज मेरे जैसे अनेक लोग हैं जो भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं लेकिन उनके परिवार के लोग आप जैसा पष्चाताप नहीं कर हैं। बल्कि जेल में उन्हें मलपूआ पहंुचा रहे हैं। लेकिन मैं इस दृष्किोण से अभाग हूं। मैं अपने पिता के आदर्ष की बली बेदी पर चढ़ चुका हूं।

मैने आपसे कहा था कि डैड वनडे मेक यू प्राऊड। बट इसके लिए आपको अपना एटीटृयूड बदलना होगा। 21वी सदी के अनुसार अपने को ढालना होगा। बात-बात पर संस्कार एवं कल्चर की दुहाई देनी बंद करनी होगी। थोड़ा अपने आपको को अपडेट करना होगा। मैं नहीं चाहता कि आपके चलते दोस्तों में मेरी नाक कट जाए। आपको मेरे दोस्त दकियानसू विचारों वाला समझें। पापा आखिर आप क्यों नहीं समझते हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। पाड्ढण युग में नहीं। इस युग में कल्चर का कोई महत्व नहीं।
आपको समय के साथ बदलना होगा। धोती कुर्ता की जगह सूटेड-बूटेड होना पड़ेगा। आपके समय में लोग धोती कुर्ता पहनते थे। इसका यह अर्थ नहीं कि आप आज भी पहने। क्योंकि हमारे पूर्वज तो नंगे रहते थे तो क्या हमें भी नंगा रहना चाहिए। डैडी मैं समझता हूं कि इसमें आपकी कोई गलती नहीं बल्कि दादाजी ने आपको गलत संस्कार हीं दिया था। वर्ना आप भी आज मार्डन होते। लेकिन आप कर हीं क्या सकते थे। उस जमाने में आप पिता की इच्छाओं का अनादर भी तो नहीं कर सकते थे । आज की तरह आपके समय में लोगों की स्वतंत्रता थोड़े थी। यहीं कारण है कि आप थोड़ा कुंठित हो गये हैं। इसलिए आपमें आत्म विष्वास थोड़ा कम है। पर घबड़ाने की बात नहीं मैं आपको पर्सनालटी डेवलपमेंट की कोर्स करावा दूंगा। सुना है कि आप अन्ना हजारे के आंदोलन से काफी उत्साहित हैं। लेकिन अन्ना हजारे के आंदोलन से आपको ज्यादा उत्साहित होने की आवष्यकता नहीं । क्योंकि क्या आप समझते हैं लोगों के बदले बिना भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा।
पापा आप तो अपना जीवन जी लिए हो लेकिन अपनी षर्तें थोपकर मेरे जीवन में जहर तो मत घोलो। अब आपको मेरे अनुसार जीना होगा।

पापा आपको मेरे झूठ बोलने पर आपत्ति है। लेकिन मैंने झूठ बोलना किससे सीखा। इसी समाज से सीखा। उन लोगों सेीखा जो आज समाज का नेतृत्व कर रहे हैं। पापा आप क्यों नहीं समझते कि आज महात्मा गांधी नहीं हैं लोग उनको भूला चुके हैं। लोग उनके आदर्षों का इस्तेमाल आज अपने निजी लाभ के लिए कर रहे हैं। कारण कि कहने को तो सभी लोग उनके आदर्षों पर चलते हैं लेकिन तब भी इस देष में भ्रष्टाचार खूब फलता-फूलता है। पापा क्या आज सत्यवादी देष में भूखा नहीं मर रहा है। क्या आप सत्यवादी बनाकर मुझे भूखा मारना चाहते हैं। आखिर आप क्यों नहीं समझते कि आज झूठ बिकता है। सत्य दर-दर की ठोकर खाता है। आषा है आप मेरी बात समझ गए होंगे। देर सबेर आप मेरे बिचार समझ हीं जाते हैं या आपको समझना पड़ता है। मां कहती है कि आप मुझे अपने जान सेे ज्यादा प्यार करते हैं। इसका आपको प्रमाण देना होगा । मैं ऐसे नहीं मानूंगा। इसके लिए आपको अपने आदर्षों को पूत्र मोह के भेंट चढ़ाना होगा। आपको मुझे जमाने के साथ तरक्की करने देना होगा। जैसा कि और लोग तरक्की कर रहे हैं।

अन्त में आपका बेटा- बड़बोलनगुरू।

ब्रिटेन में उपप्रधानमंत्री क्लेग पर फेंका गया पेंट

ब्रिटेन में उपप्रधानमंत्री क्लेग पर फेंका गया पेंट - इसे कहते हैं कि विरोध का उदारवादी तरीका। वर्ना इन दिनों जूतों का मौसम है।


सरकार भ्रष्टाचार नही मिटाना चाहती- बल्कि अन्ना की टीम को पटाना चाहती
है।


गददाफी पर साढ़े सात करोड़ का इनाम- यह तो फिजूलखर्ची है।

आतंकियों को नहीं करने देंगे अपनी जमीन का इस्तेमालःहिना रब्बानी- पिछले कई वड्र्ढों से हम यह प्रतिज्ञा दोहराते रहे हैं। हमारी गंभीरता का आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं।

धरती पर 87 लाख प्रजातियां- जिसमें से कुछ दुर्लभ भारत में खजाना उड़ा रही हैं।
भ्रष्टाचार का मुद्दा विधानसभा में गूंजा- कि लोकतंत्र का गला सरकार ने रामलीला मैदान में था घोंटा।

ओबामा के लिए बहुत कठिन डगर पनघट की - पर कहां से भरें वो डालर की मटकी।

क्राइम रिर्पोट देखें डर भगाएं।



मेरा आपको सुझाव है कि अगर आप कमजोर दिल इनसान हैं तो टीवी पर क्राइम रिपोर्ट न देखंे। वरना हार्ट अटैक होने पर जिम्मेदारी मेरी नहीं होगी। थोड़ा मजबूत दिल इनसान को चेस्ट पेन या सर दर्द तक की षिकायत रह सकती है। लेकिन कमजोर दिल इनसान का राम-नाम सत्य होना तय है। दिवाली के पटाखे से षायद आप बच जाएं लेकिन क्राइम रिर्पोट के बम से बचने की संभावना नही ंके बराबर है। हां जो हाॅरर फिल्मों के षौकिन हैं वे जरूर हाॅरर दृष्य का लुत्फ उठाएं। औरत एवं बच्चे ऐसे सीन के प्रति काफी संवेदनषील होते हैं। आइए जानते हैं उनके अनुभव के बारे में कि जब वे पहली बार टीवी पर क्राइम रिर्पोट देखे तो उनको कैसा लगा। आइए जानते हैं मेरी पत्नी के अनुभव। क्राइम रिपोर्ट देखकर रात भर वह जगी रह गई। उसका कहना था कि टीवी वाले भाई साहब जाते-जाते चेतावनी देकर गये थे कि चैन से सोना हो तो जाग जाइए। वह रातभर जागकर ताकती रह गयी कि जरूर कोई बड़ी बात होगी वरना भाई साहब ऐसा थोड़े कहते। वह मुझे समझा रही थी कि आज भी घोड़ा बेंचकर मत सोना जी आज कुछ हो सकता है। पड़ोस की एक बहन जी से जब मैं क्राइम रिर्पोट पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उनका कहना था अजी मत पूछो टीवी वाले भाई जी इतने गुस्से में लग रहे थे मानो वो टीवी से निकलकर आंख खोद देगें। जब तीसरी बहन जी से पूछा तो उनका कहना था कि मेरे बच्चे तो उनके हाव-भाव को हीं देखकर चीखने चिल्लाने लगते हैं। उनसबों कहना था कि अंकल का चेहरा-मोहरा फिल्मों के खलनायक से मेल खाता है। वो मुझे बहुत डरावने लगते हैं।
चैथी बहनजी का क्राइम रिर्पोट के बारे में कहना था कि मुझे तो लगा कि वे मन का भड़ास निकाल रहे थे। हो सकता है कि पत्नी के साथ घर पर हुए संग्राम का यहां गर्जन- तर्जन के साथ जवाब दे रहे हों। सामने हिम्मत जो नहीं हुई होगी।
जब मै लोगों से यह जानना चाहा कि आप ऐसा प्रोग्राम क्यों देखते हैंैं। तो उनमें से अधिकांष का कहना था कि वे डरावनी फिल्मों के षौकिन हैं। कुछ लोगों का कहना था कि लड़ाई झगड़े का कांसेप्ट उनको सीरियलों से पूरा नहीं मिल रहा था। सो उन्हों ऐसी रिर्पोटों को तरजीह दी।
जब मैं कुछ पतियों से पूछा कि टीवी सीरियलों एवं क्राइम रिर्पोटों को देखने के बाद आपके पत्नियों में क्या परिवर्तन आया है। तो उन्होंने कहा अजी मत पूछो वे पहले से ज्यादा संग्राम प्रिय हो गई हैं। वे फिल्मी स्टाइल में हमें डराती धमकाती हैं।
जब मैं रोड़छाप एक्सपर्ट से इस विड्ढय पर उनकी राय जाननी चाही तो वे क्राइम रिर्पोट के कई फायदे गिनाए। जैसे अगर किसी को डरने की बीमारी है तो वह टीवी पर क्राइम रिर्पोट अवष्य देखें क्योंकि एक से एक भयानक दृष्य देखकर मन से डर निकल जाएगा।
जहां तक मेरे बाइट का सवाल है तो मुझे क्राइम रिर्पोट को देखकर लगा कि समाज से संवेदना अभी मरी नहीं है। क्राइम रिर्पोट बांचने वाले भाईजी काफी हमदर्द लग रहे थे। वे लोगों का इतना सावधान करा रहे थे कि अगर आप उसपर पूरा अमल करें तो घर से निकलना बंद कर देंगे। इसके अलावे मुझे लगा कि उनसे दूसरों का दुख दर्द देखा नहीं जाता। तभी दो क्राइम रिर्पोट को  लोगों के सामने ग्लेमराइज करके प्रस्तुत कर रहे थे।

शनिवार, 3 सितंबर 2011

ये है दिल्ली मेरी जान



मैं गीता की षपथ लेकर कहता हूं कि जो कहंूगा सच कहूंगा सच के सिवा कुछ भी नहीं कहूंगा। मैं भी राजनेताओं की तरह सत्यनिष्ठ हूं। और वे सत्य का जितना पालन करते हैं। मैं भी सत्य का उतना हीं पालन करता हूं। इसमें एक प्रतिषत भी संदेह की गुंजाईष नहीं है। जिसको हो सीबीआई जांच करवा ले या कमीषन बैठवा ले। मैं रोकूंगा नहीं। राजा हरिष्चन्द्र के बाद सत्य का पुजारी मैं हीं पैदा हुआ हूं। यकीन न हो तो फेसबुक या टृवीटर पर जाकर मेरी विष्वसनीयता जांच ले। उसके बाद भी अगर संदेह कायम हो तो आंदोलन की राह अपना लें। लोकतंत्र है मै किसी को रोकने वाला कौन होता हूं। मैं सरकार की तरह किसी को अनषन करने से नहीं रोक सकता हूं। यकीन मानीए रामदेवजी की कहानी भी आप पर नहीं दोहरायी जाएगी। इतनी भूमिका काफी है। अब मैं अपने विड्ढय पर आता हूं। हर बार की तरह मैं आपको नयी कहानी सुुनाऊंगा । आज बारी है दिल्ली की।। चूंकी मेरी रोजी-रोटी दिल्ली से हीं चलती है। इसलिए मैं दिल्ली का हीं गुण गाऊंगा। नमक हरामी नहीं करूंगा। यकीन मानीए जिसका मैं खाता हूं उसका गुण गाता हूं। कुछ लोगों को मेरे इस विषेड्ढ गुण पर गहरी आपत्ति है। उनका कहना है कि मैं जहां भी जाता हूं गाने बजाने लगता हूं। आपहीं बताइए आज के युग में कौन किसका गुण गाता है। तो गाना-बजाना मेरी बुराई हुई की विषेड्ढता। कुछ लोगों का कहना है कि मुझे अपना मुंह मिठठू बनने की आदत है। इसपर मेरा कहना है कि आप मेरी प्रषंसा करने का ठेका लें तो मैं अपना गुण नहीं गाऊंगा। अगर ठेका नहीं ले सकते तो कृपया मुझे सलाह न दें। आपसे मैं पूछता हूं कि आज के युग में आप किसी से प्रषंसा की आषा कर सकते हैं। जमाना सेल्फ प्रमोषन का है। अगर आप अपनी प्रषंसा खुद नहीं गाऐंगे तो प्रषंसा सुनने के लिए तरस जाएंगे। लेकिन लोगों को कौन समझाये। लेकिन आप लोगों की बातों में न आएं और गाने बजाने का गुण विकसित करें। आने वाले दिनों में इस गुण के चलते आपको भारी रकम मिलेगी। लोग पैसे देकर आपसे अपने गुणों का गुणगान करायेंगे। जैसा कि पहले के जमाने राजा-महाराजा करवाते थे।
एक बार फिर मैं विड्ढयांतर हो गया। हम बात कर रहे थे दिल्ली के बारे में अपने अनुभव की।
तो अगर आप आप पहली बार दिल्ली आ रहे हैं तो सावधान हो जाइए। क्योंकि खांटी दिल्लीवालों की प्यार भरी बातें आपको गाली जैसी लग सकती है। जबकी हकीकत मैं वे आपसे प्यार कर रहे होते हैं। हालांकि ऐसा अनुभव आपको ज्ञान की नगरी वाराणसी में भी हो सकता है। जहां दोस्त अपने प्यार का इजहार गाली-गल्लौज से करते मिल जाएंगे। हालांकि मेरे जैसे इज्जतदार पुरूड्ढ के साथ ऐसा होने पर आपको बुरा लग सकता है। लेकिन आपके साथ ऐसा होने पर मुझे बुरा नहीं लगेगा। क्योंकि जब मेरे साथ ऐसा हो सकता है तो आप किस खेत की मूली ठहरे। दिल्ली के बारे में मेरा खास अनुभव है कि पार्क हो या मेट्रो सब जगह आप स्वचालित हो जाते हैं। अब मैं दिल्ली मैंट्ो की कथा सुनाता हूं जिस पर हम सबों को गर्व है। दिल्ली मेट्रो के बारे में मै बस इतना हीं कहूंगा कि बस आप लाइन में लग जाइए सब काम अपने आप हो जाएगा। अपने आप आप ट्रेन में पहुंच जाएंगे। अपने आप स्टेषन पर उतर जाएंगे। सबकुछ स्वचालित ढंग से। थोड़ी भी मेहनत नहीं लगेगी। हां आपमें पायलट बनने कि योग्यता होनी चाहिए यानी षत प्रतिषत स्वस्थ्य होना। कमजोर लोगों की गंुजाइष यहां नहीं है। अब बात करते हैं दिल्ली की बसों के बारे में । दिल्ली की बसों के बारे में मेरा कहना है कि दिल्ली की बसें आपको आपकी वीरता साबित करने की मौंका देती है। बसों में इनती भीड़ आपको मिलेगी की आपको आगे बढ़ने के लिए वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो गाना पड़ेगा। जहां तक सीट पाने का सवाल है तो मेरा आपको सुझाव है कि आप विधायक की सीट पाने का प्रयास करें। दिल्ली के बसों में सीट पाना इतना आसान नहीं। वैसे दिल्ली की बसों में यात्रा करके आप तंदरूस्त हीं होंगे। दिल्ली के बारे में मैं एक बात और कहूंगा कि जिसकी अपनी पत्नी के साथ अनबन हो वो आकर दिल्ली में रहना षुरू कर दे। अगर महाभारत की जगह रासलीला न होने लगे तो मूंछ मोड़वा दूंगा। कारण की आप बसों में यात्रा करके इतना थक गये होंगे कि पत्नी गाली क्या अगर ढोल भी बजायेगी आप नहीं जगने वाले हैं। हां जो कार की सवारी करेंगें उनके घर में पति पत्नी में झगड़ा होगा क्योंकि वे लोग स्वस्थ्य रहने के लिए कुछ तो श्रम करेंगे न।
दिल्ली के बारे में मेरा स्पेषल अनुभव यह भी है कि आपको आतंकवादी आक्रमण से ज्यादा डायबीटीज के आक्रमण का भय सताएगा। इसके अलावा आपको चिकनगुनिया का भय सतायेगा मलेरिया का भय सतायेगा। आप सोंच रहें हैं साफ- सुथरा जगह पर मलेरिया और चिकनगुनिया के वायरस क्या करेंगे तो उत्तर है कि वे थोड़ा सभ्य हो गये हैं और सभ्य लोगों को की तरह वो भी बड़ी एवं साफ-सुथरी बस्तियों में रहना पसंद करने लगे हैं। दूसरी बात जहां गांव में समय काटे कटता नहीं वहीं यहां पेट पूजा के लिए भी समय बचता नहीं है। अब बात करते हैं दिल्ली पुलिस की। गांव में जहां पुलिस अपराध के वक्त सोयी रहती है। वहीं दिल्ली में पुलिस जागकर भी खोयी रहती है। अपराध के बारे मेरा मानना है कि अपराधी या तो हिन्दी फिल्मों से अपराध के तरीके सीखते हैं या फिर फिल्मों वाले दिल्ली से अपराध के कांसेप्ट लेते हैं। इसके अलावा दिल्ली में मैने लोगों को पषुओं के दरबे में रहते देखा। प्रकृति की गोद में सड़कों पर सोते देखा।
वैसे दिल्ली के बारे में मेरी रिर्पोट गलत भी हो सकती है। क्योंकि मुझे दृष्टि दोष भी हो सकता है। वैसे भी इन दिनों मुझे पीलिया की षिकायत है। कुछ लोगों की नजर में सावन के अधें वाली कहावत मुझपर ठीक बैठती है। फैसला आपको करना है मैं कोई मनोवैज्ञानिक थोड़े हूं। मैं कोई इतना छोटा आदमी भी नहीं कि अपना आकलन स्वयं करूं। मुझपर रिसर्च तो कोई दूसरा हीं न करेगा ।

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

भ्रष्टाचार मतलब हाई ब्लड प्रेषर

भ्रष्टाचार मतलब हाई ब्लड प्रेषर
कुछ लोगों की नजर में देष की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है जबकि मेरी नजर में भ्रष्टाचार देष की सबसे बड़ी समस्या न होकर यह तो एक लक्षण है असली समस्या है हाई ब्लड़ प्रेषर है। दरअसल दृष्टिदोड्ढ के कारण कुछ लोगों को हर ओर भ्रष्टाचार हीं भ्रष्टाचार दिखाई दे रहा है। तुलसी बाबा कह गये हैं कि जाकि रही भावना जैसी हरी मूरत देखी वह तैसी। अगर ऐसी बात नहीं होती तो सरकार को भी भ्रष्टाचार दिखाई देता केवल अन्ना हजारे एवं अरविन्द केजरीवाल को हीं नहीं दिखाई देता। जो जिस वातावरण में रहता है। उसी प्रकार उसकी भावना होती है। इसका मतलब है कि हमारे सांसद पवित्र एवं सात्विक माहौल में रह रहे है। एवं अन्ना हजारे की टीम इसके विपरीत माहौल में । यह तार्किक निष्कड्र्ढ है किसी को बुरा मानने कि बात नहीं है। दूसरी बात कि मन षांत रहने पर सबकुछ ठीक-ठाक लगता है लेकिन ब्लड़ प्रेषर हाई रहने पर मन बेचैन रहता है और थोड़ी सी समस्या भी भयावह लगती है। अन्ना एण्ड कंपनी की यहीं समस्या है। मेरा तो षुरू से मानना अन्ना एण्ड कम्पनी का ब्लड़ प्रेषर सामान्य नहीं है। वर्ना भ्रष्टाचार जैसी छोटी समस्या पर वो इतना हो हल्ला नहीं करते। हाई ब्लड प्रेषर के चलते हीं देष में व्याप्त थोड़े से भ्रष्टाचार को वे लोग पहाड़ बनाए हुए हैं। दूसरी ओर सरकार का ब्लड प्रेषर नार्मल है। कारण कि अन्ना की टीम के इतना हो हल्ला करने के बावजूद सरकार के कान पर जू तक नहीं रेंगती दिखी। धैर्य इसे कहते हंै। एक दिन नहीं दो दिन नहीं अन्नाजी को 12-13 अनषन करना पड़ा। अपने इसी गुण के ये लोग सरकार चला रहे हैं। एवं अन्नाजी अनषन कर रहे हैं। और हो-हल्ला करने वाले सरकार के बाहर हैं। योग गुरू बाबा रामदेव की टीम का भी ब्लड़ प्रेषर चेक करवाया जाना चाहिए। योग करने से क्या हो जाता है। उनके विरोधियों का तो यहां तक कहना है कि बाबाश्री मंच पर जो उछल कुद करते हैं वह इसी वजह से करते हैं। आष्चर्य देखीए कि योगा सीखाने वाले में अधैर्य आ गया और सीखने वाले में धैर्य। यानी गुरू गुड़ रह गया और चेला चीनी हो गया। योग सीखकर षिष्यों ने गुरू पर रामलीला मैदान में पूरे धैर्यपूवर्वक डंडे बरसाये। और गुरू को तंबू के नीचे छूपना पड़ा। योगा सीखाने से राजनीति थोड़े आ जाती है। दांव-पेंच थोड़े आ जाता है। दूसरी बात कि योगी को माया मोह में पड़ने कि क्या आवष्यकता है। माया में पड़ने पर तो कींचड़ तो लगेंगे हीं न। योगी का संबल धैर्य होता है। इतने छोट से मुद्दे पर रामलीला मैदान में इतना हो हल्ला करके बाबाश्री ने यह साबित कर दिया कि उनमें धैर्य बिल्कुल नहीं है।
मेरा मानना है कि लोकपाल या लोकायुक्त के नियुक्ति से देष से भष्टाचार दूर नहीं होने वाला बल्कि भ्रष्टाचार दूर करने के लिए हाई ब्लड प्रेषर का टीका विकसित किया जाना चाहिए। मेरा ट्ांसपरेंसी इन्टरनेषनल से कहना चाहूंगा कि वे सर्वाधिक भ्रष्ट और सबसे कम भ्रष्ट देषों की सूची जारी करके अपना समय जाया न करें बल्कि ये बताएं कि किस देष में सर्वाधिक हाई ब्लड़ के लोग हैं। क्योंकि हाई ब्लड़ प्रेषर के लोग हीं भ्रष्टाचार पर हो हल्ला मचाते हैं।

चीन हमसे कितना प्यार करता है



पड़ोसी हो तो चीन जैसा नही तो न हो। कारण कि चीन अपने परायेपन का भेद मिटा चुका है। और वसुधैव कुटुम्बकम् हीं उसका आदर्श वाक्य हो गया है। यहीं कारण है कि कभी वह अरूणाचल को अपना भाग कहता है तो कभी किसी और देश के भूभाग को। पर संकीर्ण राष्ट्रवाद के चलते लोग उसके हर कदम का गलत अर्थ निकाल लेते हैं। और उसे आक्रमणकारी आदि क्या-क्या समझ लेते हैं। आखिर विष्व में अनेक राष्ट्र की क्या आवष्यकता है। क्या सभी राष्ट्र या खासकर एषिया के राष्ट्र चीनी छतरी के नीचे नहीं आ सकते। और वह भी तब जब वह गा रहा हो मेरी छतरी के नीचे आ जा। क्या अनेक राष्ट्रों का सिद्वान्त विष्व बंधुत्व में बाधक नहीं है।


ऐसा नहीं कि चीन की नेक नीयति पर हर कोई षक करता हो। उसकी भावनाओं को समझने वाले मुझ जैसा लोग भी इस धरती पर हैंैं। और चीन की भावनाओं को समझने वाले लोगों के बल पर हीं देष में हिन्द-चीन भाई भाई का स्पिरिट समय-समय ऊफान मारता है। लेकिन इस स्पिरिट को कुछ भाईजी लोग समाप्त करने पर तुले हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद यह भाव मौजूद है। चीन पहले भी हिन्द-चीन भाई-भाई के विष्वास पर खरे उतरा था और भविष्य में भी खरा उतरेगा ऐसा मेरा विष्वास है। इसमें एक प्रतिषित भी संषय करने की गुंजाइष नहीं है।


लेकिन कुछ भाईजी लोग मेरे विष्वास का माखौल उड़ाने में भी पिछे नहीं रहते हैं। और मुझे कल्पना लोक में जीने वाले प्राणी आदि उपमाओं से विभूषित करते हैं। लेकिन उनका यह व्यवहार मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगता। कारण कि वो अपना क्या जो इस प्रकार का अपनापन न दिखाये। जब लोग मेरे विष्वास पर हसते हैं तो मुझे उनपर दया आती है कारण कि वे मेरे जैसा ज्ञानी थोड़े हैं।


भारत ने विष्वास के महत्व को षुरू से समझ लिया था। उसने यह जान लिया था विष्वास के द्वारा असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। सफलता के लिए आत्मविष्वास बहुत जरूरी है। विष्वास के द्वारा हृदय परिवर्तित किया जा सकता है। दूसरी तरफ हर किसी पर अविष्वास करना भी एक बिमारी है। खासकर चीन जैसे पड़ोसी पर। सबपर अविष्वास करना व्यवहारिकता के दृष्टिकोण से भी उचित नहीं कहा जा सकता। क्योंकि फिर लोक व्यवहार कैसे चलेगा।


अगर आपको लगता है कि चीन अरूणाचल में घुसर रहा है तो यह आपकी भूल है। मान लीजिए घुसर हीं रहा है तो अगर अपना अपनों पर हक नहीं दिखायेगा तो भला कौन दिखायेगा। दूसरी बात चीनी षासक अरूणाचल को चीन का हिस्सा इसलिए साबित करना चाहते हैं क्योंकि उनको ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है यानी वह संपूर्ण पृथ्वी को हीं अपना परिवार मानने लगे हंै। और देषों को अभी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई है। क्या भारत चीनी सैनिकों के अरूणाचल में दिखाये गये सद्भाव का विरोधकर संकीर्णता का परिचय नहीं दे रहा है। चीन इस तरह का सद्भाव कई देषों के साथ दिखाता है। या दिखाने की कोषिष करता है। लेकिन आष्चर्य है कि सभी देष उसके सद्भाव को बैर भाव की तरह लेते हैं। जहांतक ब्रम्हपुत्र नदी पर बांध बनाने का सवाल है तो सरकार को चीन के इस कदम का स्वागत करना चाहिए। क्योंकि सरकार क्या चाहती है कि लोग ब्रम्हपुत्र नदी की धारा में बह जाएं। आखिर जो काम सरकार को करना चाहिए। उसे चीन की सरकार ने मुफ्त कर दिया तो इसमें रंज होने की क्या जरूरत है। आखिर करोड़ो की फसल ब्रम्हपुत्र नदी की बाढ़ में बरबाद हो जाती है। चीन ने भारत के हित के लिए विष पी लिया है। और लोग हैं कि समझते हीं नहीं।


पुत्र पिता की संपत्ति को अपनापन के चलते हीं न अपना समझता है। चीन अगर भारत की संपत्ति को अपना समझ रहा है तो निष्चत तौर पर भारत के प्रति उसका अपनापन ज्यादा है। वरना ऐसे हीं किसी की संपत्ति कोई अपना थोड़े समझने लगता है। वह न्यूयार्क और मास्को को अपना थोड़े कहता है। आष्यकता है मेरे जैसे समझदार लोगों की जो चीन के इस भाव को समझ सके।


मेरा मानना है कि भारत को अपनी सुरक्षा जिम्मेदारी चीन को सौंप देना चाहिये। क्योंकि चीन जैसा आपको हितैषी पड़ोसी नहीं मिलेगा। अगर चीन हथियारों का जखीरा तैयार कर रहा है तो वह भारत की सुरक्षा जरूरतों को घ्यान में रखकर हीं ऐसा कर रहा है। वरना वह इतने बड़े पैमाने पर हथियार बनाकर क्या करेगा। आखिर पड़ोसी-पड़ोसी के काम नहीं आयेगा तो कौन आयेगा। पहले अमेरिका अन्य देषों के सुरक्षा जरूरतों का ध्यान रखता था और पूरे विष्व के लिए हथियार बनाता था। अब चीन बनाना चाह रहा है।


वैसे तो मुझे चीन की नेक नीयति में कोई संदेह नहीं है। लेकिन जिसको संदेह है और चीनी आक्रमण का भय सता रहा हैै। वह हिन्द-चीन भाई-भाई मंत्र का जाप कर सकते है। कहते हैं मंत्रों में बड़ी ताकत है। भाव के साथ मंत्रों के जाप करने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। फिर चीन की क्या विसात है।
मेरा तो कहना है हिन्द-चीन भाई-भाई स्तोत्र का पाठ देषवासियों के लिए अनिवार्य कर देना चाहिये। इसका कारण यह है कि मंत्र विज्ञान के अनुसार मंत्रों का सामुहिक पाठ से चमत्कारिक प्रभाव उत्पन्न होता है। अगर हिन्द-चीन भाई-भाई का सामुहिक पाठ किया जाय तो उसकी ध्वनियां चीन तक पहुंच जायेगी और चीनी के सत्ताधीषों के मति को षांत कर देगी।


शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

ममता के अंदाज में सड़क पर उतरेगी माकपा

शिक्षक और प्रिंसपल काटेंगे चलान- और पुलिस के जवान लेंगे क्लास।

मिल मजदूरों के मुद्दे पर फिर साथ दिखे राज और उद्धव- मतलब मिल मजदूरों में कोई यूपी बिहार से नहीं था।

ममता के अंदाज में सड़क पर उतरेगी माकपा- मतलब माकपा विरोध करते-करते अनुसरण पर उतर गई।

गहलोत का गरीबों के लिए योजनाओं का पिटारा- करना होगा विरोधियों का निपटारा।

चुप्पी तोड़ते ही लालू पर नीतीश ने किया पलटवार- ये तो तानाशाही है।

नीतीश ने फिर ली अधिकारियों की क्लास- पढ़ाई अधूरी किए होंगे।

अगुवानी में जुटा समूचा दिल्ली राज- आइए आपका इंतजार है।

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

उत्तर प्रदेश चुनाव में मारन, मोहन एवं उच्चाटन का प्रयोग

मेरा दावा है कि पहले जमाने में देशभक्त उतना नहीं थे कि जितना आज हैं। मेरा यह भी मानना है कि देश कि सेवा के लिए नेता बनना बहुत जरूरी है। नेता बने बिना देश की सेवा नहीं हो सकती। कारण की कुछ करने के लिए पावर की आवश्यकता है। बिना पावर सब सुना। कहा भी कहा गया है क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो। आज देशवासी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं। यहीं कारण है कि आज नेता बनने केे लिये वैध- अवैध सारे हथकंडों को अपनाया जाता है। मारा-मारी की जाती है। कींचड़ उछालने से भी परहेज नहीं किया जाता है। इन दिनों उत्तर प्रदेश में इसका सीधा प्रसारण देखा जा सकता है। लोकतंत्र के इस महापर्व में वह सबकुछ हो रहा है जो आनेवाले दिनों में लोकतंत्र का मान बढ़ाएगा। यानी नेतागण स्वस्थ एवं सालीन लहजे में अपनी बातें रख रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप में भी शिष्टता का पूरा ख्याल कर रहेे हैं। चुनावी सरगर्मी परवान चढ़ने के बावजूद पूरे धैर्य धारण किये हुए हैं। मारन मोहन एवं उच्चाटन के भी खूब प्रयोग हो रहे हैंैं। कोई किसी को श्रा्रप दे रहा है तो कोई किसी को आर्शीवाद। हालांकि अभी शुरूआत है। क्लाइमेक्स के लिए आपको कुछ दिन इंतजार करना होगा।
हाथ से फिसल न जाए इसके लिए नेताजी ने श्रम विभाजन का पूरा ख्याल कर रखा है। अभी से सबका दायित्व सौंप दिया गया है। नेताजी के नजर में चुनाव जीतने के लिए जनता का वोट जितना जरूरी है उतना हीं भगवान की कृपा भी जरूरी है। नेताजी के पास जनता को मनाने के साथ-साथ भगवान को भी मनाने की पूरी योजना है। जनता को मनाने का जिम्मा जहां नेताजी ने अपने विश्वासपात्रों को दे रखा है वहीं भगवान को मनाने का जिम्मा उन्होंने अपने पत्नी को दिया है। नेताजी की धर्मपत्नी अपने इस काम में मुस्तैदी से लगी हुई हैं। उनका सप्ताह का आधा दिन व्रत में गुजर रहा हैं तो आधा दिन पंडितजी के साथ विचार- विमर्श करने में। भगवान का भाव भी चुनाव के वक्त सातवें आसमान पर है। जहां पहले वह लड्डू एवं पंेड़ा पर प्रसन्न हो जाया करते थे। वहीं अब अनुष्ठान से नीचे पर बात नहीं बन रही है। पंडितजी ने स्पष्ट चेतावनी दे रखी है कि अगर विरोधी दल के नेता ने अधिक चढ़ावा चढ़ा दिया या बड़ा अनुष्ठान करा दिया तो जीत की जिम्मेदारी उनकी नहीं होगी। नेतागण भगवान को यह कहने का मौका नहीं देना चाहते कि दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोय। इसलिए सालभर पहले से हीं उनका पूजा पाठ शुरू कर दिया गया है।
ऐसा नहीं कि भगवान से केवल प्रार्थना नेतागण हीं कर रहे हैं। जनता भी खूब भगवान को धन्यवाद दे रही है। कारण कि इनदिनों वहां खूब सदाव्रत लुटाया जा रहा है। जनता की पूछ इतनी बढ़ गई है कि लोग भगवान से रोज चुनवा कराने की प्रार्थना कर रहे हैं। ताकि लोगों की पूछ इसी तरह बनी रहे। जनता की इतनी पूछ तो रामराज्य में भी नहीं हुई होगी।
जनता के जीवन में इतनी खुशहाली शायद हीं पहले कभी आया हो। मुफ्त रैली में भाग लेकर शहर घुमने का अवसर तो मिल हीं रहा है। साथ में जयाप्रदा आजम खां संवाद सुनकर मनोरंजन करने मौका भी भरपूर मिल रहा है। इसके पहले आजम खां - अमर सिंह संवाद सुनकर लोगों ने अपना मनोरंजन किया था। पहले भी लोग अंगद- रावण संवाद, लक्ष्मण-प्रशुराम संवाद से लोग परिचित रहे हैं। लेकिन यूपी में हो रहे संवादों के आगे सबकुछ फीका है।

सुन्दर रचना

मैं एक दिन फेसबुक पर चैटिंग  कर रहा था। खुशनुमा माहौल था स्क्रीन पर एक मैडमजी का हो रहा दीदार था। पर हमदोनों के बीच एक अनचाहा सा दीवार था। मैंने हिम्मत कर के दीवार तोड़ दी। हैलो मैम कहकर कनेक्शन जोड़ दी। मैने कहा हैलो मैम इन दिनों क्या चल रहा है। उन्होने कहा कि इन दिनों भारत-पाक में वार चल रहा है। एक बार नहीं सौ बार चल रहा है। क्योंकि कवि सम्मेलन धुआंधार चल रहा है। मैंने का कहा कि यह तो किसी समाचारपत्र में नहीं है। उन्होंने कहा कि इसका मतलब लोगों के पास दूरदृष्टि नहीं है। भविष्य जानने के लिए कवि होना पड़ेगा। जहां जैसा वहां वैसा गाना पड़ेगा ।
फिर उन्होंने बात को मोड़ा और शिकायत भरे लहजे में बोला। आप तो कभी मेरी कविता की तारीफ भी नहीं करते। मैंने लिख भेंजा सुन्दर रचना। उधर से जवाब आया अगली बार मत बकना। वरना मुश्किल पड़ जाएगा मेरे पति से बचना। मैने कहा क्या मै कुछ गलत कह दिया। उन्होंने कहा नहीं सिर्फ सही वक्त का चयन तूने नहीं किया। वैसे तेरा कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। अभी तुम्हारा मेरे पति से मार नहीं हुआ है। मैने कहा कि मैडमजी ये आप क्या कह रही हैं। क्यों नेकी करने पर ब्रम्हहत्या का पाप दे रहीं हैं।। मुझे क्या पता था कि आप मेरे साथ विश्वासघात कर देंगी। चैटिंग मेरे साथ करेंगी और साथ अपने पति का देंगी। वैसे भी मैने आपकी कविता की तारीफ की थी। आपकी नहीं। क्या आपके पति को आपकी तारीफ करना भी पसंद नहीं है?
उन्होंने कहा कि तुम इतना अपसेट क्यों हो। दरअसल तुम्हें मालूम नहीं रचना मेरा नाम है। मेरा नाम कोई प्यार से ले उन्हें पसंद नहीं है। ये उनका मेरे प्रति यह प्यार है।
वैसे तारीफ करके तुमने कोई अपराध थोड़े किया है। सुन्दर को सुन्दर नहीं कहोगे तो क्या कहोगे। मेरी सुन्दरता को देखकर बड़े-बड़े मेरी तारीफ करने से अपने आपको नहीं रोक पाते। मैने कहा कि मैडम- मैडम ये क्या बक रही हैं।
मैने पूछा कि अच्छा बताइए मुझे आपकी रचना की तारीफ करना था। अगर मैं सुन्दर रचना कहकर तारीफ नहीं करता तो भला किस तरह करता। तब उन्होंने मुझे बताया कि तुम मेरी कविताओं की इस प्रकार तारीफ कर सकते थे - आपकी श्रीगांर भरी रचनाओं को सुनकर मुझमें वीर रस का भाव जग गया। रही मेरी बात तो मुझे जो अच्छा लगता वह समझती।
वैसे सच बताऊं आपकी तारीफ करना मुझे बहुत अच्छा लगा। लेकिन आपहीं बताइए किसी के पति के सामने अगर आप उसकी पत्नी की तारीफ करेंगे तो क्या उसे अच्छा लगेगा।
फिर मैने संभलते हुए कहा कि मानलीजिए मैंने आपकी हीं तारीफ की है तो मैंने आपकी तारीफ हीं न की है कोई गाली तो नहीं दी है। उन्होंने कहा कि तुम्हारे बातों में दम है।  पर इसे समझने वाले दुनिया में बहुत कम हैं। मैने कहा कि फिर अपने पति भैंसासुर से बचने का उपाय बताओ। अबकी बार वह खुशी से चहक उठीं और कहने लगीं कि तुम कोई भविष्यवक्ता तो नहीं। मैंने कहा नहीं-नहीं मैं एक सीधा-साधा इंसान हूं। मुझे फिर किसी मुसीबत में मत डालो। उन्होंने कहा दरअसल तुमने मेरा और मेरे पति का नाम एकदम सही बताया है। मैं भी उन्हें प्यार से भैंसासुर हीं कहती हूं। तुम्हें हम दोनों का नाम कैसे मालूम हुआ।
मेरा दिल नहीं माना और मैने फिर एक बार उनसे पूछा मैडमजी क्या आपको अब भी लग रहा है कि मैने आपकी हीं तारीफ की थी। उन्होंने कहा कि किसी की तारीफ करना क्या अपराध है क्या ? तुमने जीवन में पहली बार किसी की तारीफ किए थे क्या ? क्या तुम नहीं जानते सौन्दर्य ईश्वर का हीं रूप है। सुन्दरता अपने आप में एक गुण है। उनके इस प्रकार के तर्कों को सुनकर चुप रहना हीं बेहतर समझा। लेकिन कान पकड़ा चैटिंग ना बाबा ना।