शुक्रवार, 6 मई 2011

एक दिन एक नेता की पत्नी ने पूछा

एक दिन एक नेता की पत्नी ने पूछा
अजी बताओ भ्रष्टाचार पर
लंबा-चैड़ा भाषण देने में
तुम्हे षर्म नहीं आती
डार्लिंग ये बात तो तुम्हें टीवी वाले बाबाओं से पूछनी चाहिए
कि क्या उन्हें लोगों का मूर्ख बनाने धर्म की याद नहीं आती
हम तो नेता ठहरे
भ्रष्टाचार की बात चलेगी
तो समझो हैं गंूगे -बहरे

फिर दूसरा सवाल पत्नी ने दागा
अच्छा बताओ क्या तुम्हारी आत्मा धिक्कारती नहीं
नेताजी बोले
आत्मा रहेगी तब न धिक्कारेगी
हम नेता तो आत्मा को परमात्मा विलिन कर दिए हैं।
यानी अपने को धन की देवी लक्ष्मी में लीन कर लिए हैं।
वैसे भी हम चार्वाक के अनुयायी हैं
यानी कि यावत जिवेत् सुखी जीवेत
अपनी जेब खूब भरत
घोटाला पर घोटाला करत्
ऐसे हम लोग ऐष करत
बाकि जनता रो-रो मरत्
फिर नेताजी ने पत्नी को पत्नी धर्म याद कराया
और कहा कि पत्नी का काम आदर्ष बघारना नहीं
पति के मन में नकारात्मक विचार डालना नहीं।
वह कैसी पत्नी
जो पति के वक्तृत्व कला पर इतराती नहीं
झूठ को सच साबित करने पर भी उसको प्रतिभावान मानती नहीं।

क्या गिरगिट की तरह रंग बदलना कला नहीं ?
क्या खुफीया एजेंसियों को नाको चने चबवाना प्रतिभा नहीं

डार्लिंग आज नही ंतो कल
अपने पति पर इतराओगी
जब पडोसन पैदल चलेगी और तुम हेलिकाॅप्टर उड़ाओगी

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