मंगलवार, 10 मई 2011

मेरी पहली सुहागरात थी

मेरी पहली सुहागरात थी
सपनों से मुलाकात थी
उत्सुकता बढ़ी थी कि
कब उसका दीदार कर लूं
जीभर कर उसे प्यार कर लूं
मारे उमंग के मैं उस कमरे घुस गया
विषालकाया को देखकर एक पल मैं रूक गया
पर दूसरे पल जाने कहां मेरा सारा षेम गया
चिलमन उठाकर देखा तो वो हंुकार भर रही थी
मुक्कातान कर वो अपने प्यार का इजहार कर रही थी
भीमकाय काया देखकर मेरा रूह कांप गया
डर के मारे मैं निकलकर चिरकुट की तरह भाग गया।
कमसीन कली थी पर ग्रेट खली में पड़ी थी
लगता था वो दारा सिंह के स्कूल में पढी थी।
भागा हुआ मैं अपने दोस्त के यहां पहुंच गया
देखकर वहां मुछे वह संकोच से भर गया
और बोला यार बताओ तुम क्यों क्लास छोड़कर भाग गया
मैने कहा यार मैं सुहागरात नहीं मनाऊंगा
जानबुझकर मैं मौत के मुह में ना जाऊंगा
मेरा मित्र बोला चिंता न कर यार मैं मित्रता निभांऊंगा
तेरी जगह सुहागरात मनाने मैं चला जाऊंगा
मित्र की बात सुनकर मैं कृतज्ञ हो गया
ऐसा मित्र पाकर मैं धन्य हो गया
मैने कहा कि यार तेरा कर्ज किस जनम चुकाऊंगा
उसने कहा चिन्ता न कर अगले जन्म तेरे लिए षादी मैं रचाऊंगा
क्या करूं विलम्ब के लिए खेद है बहुत
पर रंडुआं हूं यार इस जनम मैं मौका नहीं दे पाऊंगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी मुसीबत है शादी, हो गई तो भी बर्बादी नहीं हुई तो भी...

    और क्या दोस्ती है ...वाह क्या बात है....बहुत बढ़िया ...

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