शनिवार, 19 नवंबर 2011

परिवर्तन जीवन का अटल सत्य है।

 मेरे एक मित्र ने मुझसे पत्र लिखकर पूछा है कि मैं रोज अपना नाम क्यों बदलता हूंूं। इसपर मेरा कहना है कि भाई साहब आप मेरे षुभ चिन्तक हैं कि दुष्मन। क्या आप मुझे तरक्की करते  देखना नहीं चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि मैं एक हीं जगह स्थिर रहूं? आगे नहीं बढ़ूं। आसमान की बुलंदियों को टच न करूं। वैसे आपकी इसमें कोई गलती नहीं है। दरअसल आप आदर्षवादी किस्म के जीव है। आप जैसे लोगों को थोड़ा सा परिवर्तन भी पहाड़ सा लगता है। ऐसे जीव-जन्तु भीड़-भाड़ से दूर षांत वातावरण में रहना पसंद करते है। मेरी आपको सलाह है कि आप बर्हीमुखी बने। लोगों के साथ घुलने मिलने का प्रयास करें। इसके लिए आप कोई क्लब ज्वाइन करें या जूआ खेलनेे वाले से संगत कर लें। वीयरबार या तषेडि़यों या गंजेडि़यों के संगत से भी आपमें समाजिकता आ सकती है।  आप परिवर्तन कोे सहज रूप से लें। याद रखें आप इक्कीसवीं सदी में रह रहें। पाड्ढाण युग में नहीं कि किसी भी चीज  को बदलनें में हजार या लाख वड्र्ढ लगेगा। ऐसा प्रष्न आपको उपहास का पात्र हीं बनाएगा। कारण कि ऐसे प्रष्न आपके आधुनिक नहीं होने की निषानी है। जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चलने की बानगी है। याद रखें अगर आप क्वारें हैं तो जीवन भर आप क्वांरें रह जाएंगे। भला ऐसे लड़के से कौन अपनी लड़की की षादी करेगा। जो 21वीं सदी में रहकर भी आदिम युग में जी रहा हो। ऐसा पति अपने आपको बीवी की इच्छा के अनुसार तेजी से बदल नहीं पाता।
 क्या वह सुबह उठकर बीवी को चाय बनाकर पिला पाएगा। अगर आप फिल्म देखते होंगे तो आप जानते होंगे कि फिल्मों के हीरो अपना नाम बदलते हैं। बहुत से ज्योतिड्ढियों को आपने यह दावा करते सुने होगें कि बस आप अपना नाम बदल दें ंहम आपकी किस्मत चमका देंगे। जगत का हर चीज परिवर्तनषील है। नदी की धारा प्रतिक्षण बदलती रहती है। स्थिरता भ्रम है, जबकि नवीनता हीं जीवन है। दूसरी बात यह है कि सृष्टि का प्रत्येक चीज परिवर्तनषील है। अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आदमी को प्रतिक्षण बदलना पड़ता है। जो नहीं बदलता है वह अपना अस्तित्व खो देता है। विकासवाद का सिद्वान्त भी यहीं कहता है। जब नैतिक और सामाजिक मूल्य तेजी से बदल रहा हैं तो फिर आपको बदलने में क्यों परेषानी हो रही है। भाई साहब मेरा नाम बदलना आपको क्यों ब्रेकिंग न्यूज लग रहा है। यह बात मेरे समझ में नहीं आ रही है।
मेरे नाम बदलने में क्या रखा है। आज व्यक्ति अपना गांव और गांव की यादों को सहजता से भूल जा रहा है। मां-बाप के प्यार को भूल जा रहा है। ग्रर्लफ्रेन्ड रोज बदल रहा है। मूंछ मूडवाकर मोछमुडा बन जा रहा है। लड़कियों जैसा बाल बढ़ा रहा है। लड़का अपने को लड़की के रूप में दिखाना चाह रहा है और लड़की अपने को लड़के के रूप में। अब तो पति एवं पत्नी का बदलना फैषन हो गया है। नेता असानी से पार्टी बदलता है। जो जितना पार्टी बदलता है वह उतना फायदे में रहता है। एक हीं जाॅब करने से क्या आपको तरक्की मिलेगी। कभी बहुरूपिया लोगों का मनोरंजन का साधन हुआ करता था । आज हर कोई बहुरूपिया हो गया है, इसलिए बहुरूपिए में कोई रस नहीं रह गया है। कल तक लोगों को दलाल कहकर अपमानित किया जाता रहा है। आज दलाली कमाऊ पूत बन गया है। भला षेयर दलाल को कौन नहीं सम्मान से देखेगा। कल तक दलबदलू से पार्टियां दूर रहती थी क्योंकि अन्य सदस्यों को यह रोग लग सकता था लेकिन आज उनको पटाकर रखा जाता है, क्योंकि विपत्ति के वक्त वहीं काम आते है। नोटों की गडिडयां बंटवाते हैं। बहुमत जुटाते हैं।
 परिवर्तन से भगवान भी अछूते नहीं है, तो हमारे और आपमें क्या रखा है। आखिर एकहीं ईष्वर कभी राम बनकर तो  कभी ष्याम बनकर आते हैं।  परिवर्तन का महत्व नहीं होता तो क्या वे अपने भक्तों को एकहीं रूप नहीं दिखाते।
भगवान हीं नहीं भगवान के भक्त भी बदल गए हैं। पहले वे  नंगे पांव चलते थे। जगंल में रहते थे। कंदमल- फूूल खाते थे। जमीन पर सोते थे। गरीब-अमीर को समभाव से देखते थे। कामिनी कंचन से दूर रहते थे  तब जाकर भगवान प्रसन्न होते थे।
आज अगर वह पालकी में नहीं सवारी करेंगे, एयरकंडीषन में नहीं निवास करेंगे,  अमीरों पर अपना स्नेह नहीं बरसाएंगे,  कामीनी कंचन से दूर रहेंगे तो क्या वे भगवान पर कोई प्रभाव छोड़ पाएंगे।
 अध्यात्मिक व्यक्ति आप से कह सकता सकता है कि नाम रूप में क्या रखा है। लेकिन जानकार मानते हैं कि नाम और रूप में हीं सबकुछ है।

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