रविवार, 29 जनवरी 2012

कुछ लोग फिर मंदी आने की बात कर रहे हैं।



कुछ लोग फिर मंदी आने की बात कर रहे हैं।
यानी माहौल को वेवजह खराब कर रहे है
काल्पानिक अनहोनी से हमें सावधान कर रहे हैं।
देष को वेवजह बदनाम कर रहे हैं।
भय भूख बेरोजगारी का नाम जप रहे हैं।
यानी जानबूझकर वे सावन के अंधे बनने का काम कर रहे हैं।
लोक परलोक की चिंता किए बिना सफेद झूठ बोल रहे हैं
लाखों लोग भूख से मर रहे हैं कहते फिर रहे हैं।
जबकी हकीकत है कि लाखो टन आनाज
आज भी सरकारी गोदामों में सड़ रहा है।
आदमी क्या जानवर भी उसे नहीं पूछ रहा है
किसान कर्ज के चलते नहीं
मुक्ति के लिए जन्नत की सैर कर रहा है
 क्योंकि दुखों से निवृत्ति का
सरकार की ओर से यहीं हरदम ऑफर पा रहा है।

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

2011 की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज



2011 की  सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज क्या थी। इस प्रष्न पर भिन्न-भिन्न लोगों की भिन्न- भिन्न राय हो सकती है। अमेरिका के लिए ओसामा का मारा जाना ब्रेकिंग न्यूज हो सकता है। तो भारत के लिए अन्ना का भ्रष्टाचार के विरूद्ध बड़ा आन्दोलन खड़ा करना। पाकिस्तान के लिए जरदारी का तख्तापलट रोकने के लिए अमेरिकी गुहार। लेकिन मेरे लिए बीते साल की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज रही मनमोहन सिंह का गिलानी को षांति पुरूड्ढ की संज्ञा देना।


मनमोहन सिंह के इस धमाका के आगेे दिग्गिराजा के सारे धमाके फीके पड़ गये । मनमोहन सिह ने गिलानी के षांति पुरूड्ढ का अवॉर्ड देकर उनके सारे गिलवे सिकवे दूर कर दिए। वहीं गिलानी कृतज्ञता में यह कहने पर मजबूर हो गए कि जल्दी हीं वह इसका णिं सीमा पार से भारी गोलीबारी करवा कर चुकता कर देगें।
मनमोहन सिंह ने लोगों के इस सवाल का धमाकेदार जवाब दिया कि वे कोमल हैं पर कमजोर नहीं । आवष्यकता पड़ने पर वे भी वाजपेयी की तरह इतिहास रच सकते हैं। क्योंकि इतिहास रचने का अधिकार केवल व्यक्ति विषेड्ढ या पाटी विषेड्ढ को नहीं है। मनमोहन ने गिलानी को षांतिपुरूष कहकर विरोधियों को यह भी बता दिया कि वे वाजपेयी एवं इंदिरा गांधी से कहीं अधिक परिपक्व राजनेता हैं। क्योंकि उनकी तरह वे मदहोसी का इंजेक्षन नहीं लगाना जानत थेे।
हालांकि सूत्रों के अनुसार मनमोहन सिंह का दर्द भी उनके इस कथन में झलका। जो कम बोलता है वह जब बोलता है तो धमाका करता है।  विषेड्ढज्ञों की नजर में उनका यह कथन दबाव से निकलने की एक तरकीब हो सकती है। वे विरोधियों के दबाव से इतना दब गए थे कि उन्हें यह बताना जरूरी हो गया था कि उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में ख्वाब देखने की स्वतंत्रता है। वे केवल रबर स्टंप प्रधानमंत्री नहीं है। उन्होंने आकाषवाणी करके लोगों को यह याद दिलाया कि कभी-कभी हीं सही सोनियां गांधी स्वयं विदेषी दौरे के दौरान उन्हें विदायी दे चुकी हैं। अतः सोनियां के दबाव की बात कहना हवाहवाई से ज्यादा कुछ नहीं है। वे कार्य करने में पूरी तरह स्वतंत्र हैं।
हालांकि विरोधी पार्टियों का कहना है कि गठबंधन दल के नेता अपने कार्यव्यवहार द्वारा प्रधानमंत्री पद का अवमूल्यन कर रहे थे और उनके पार्टी के नेता भी उन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दे रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि उनका गुस्सा गिलानी को षांतिपुरूड्ढ कहकर फुट पड़ा। अधिक दबाव का नतीजा था कि प्रधानमंत्री को ऑपरेषन भड़ास विदेषी धरती पर करना पड़ा। क्योंकि वहां न तो ममता थी और न  मैडम हीं।
कुछ लोग के अनुसार प्रधानमंत्री अपने दुख को कभी-कभी इन षब्दों में भी व्यक्त करते हैं। क्या मुझे इतिहास रचने का अधिकार नहीं है। मुझे लोकपाल पर क्यों नहीं आगे बढ़ने दिया जा रहा था यह बात तो समझ में आती है। लेकिन पाकिस्तान से संबंध बढ़ाने पर देष में हाय तौबा मचाना  मेरे समझ से परे है। भला मै कोई गोलीबारी थोड़ी कर रहा था जो पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ जाता। पाकिस्तानी नेताओं को गाली देने से क्या समस्या का हल निकल पाएगा। बाप रे बाप कुछ नहीं कहने पर तो वे इतनी गोलीबारी करवाते हैं। कुछ कह देने पर तो वे परमाणु बम हीं फेंक देंगे। मनमोहन सिंह का यह भी कहना है कि यह तो सामान्य समझ का व्यक्ति भी समझ सकता है। जो काम प्रेम से करवाया जा सकता है वह लड़-झगड़कर तो कतई नहीं करवाया जा सकता है। मैंने कोई नया काम थोड़े किया। वैसे भी इस देष में  षांति जाप की षाष्वत परंपरा रही है। अबतक का सुपरहिट षांति मंत्र रहा है हिन्द-चीन भाई-भाई। जो अबतक बहुत हीं फलदायी रहा है। वे चाहते हैं कि इस देष में षांति जाप की परंपरा कायम रहे। क्योंकि आदिकाल से हमारा राष्ट परंपरा प्रधान रहा है।
सूत्रों का यह भी कहना है कि विदेषी धरती मनमोहन अपने को स्वतंत्र महसूस करते हैं। बाहर उन्हें मैडम से भय वाली बात नहीं होती। इसलिए वे कभी- कभीे ऐसा बोल जाते हैं जो ऐतिहासिक की श्रेणी में आता है।
कुछ लोगों का कहना है कि मनमोहन सिंह एक सोची-समझी रणनीति के तहत यह कदम उठाए थे। मोस्ट फेवरेस्ट नेषन का दर्जा पाकिस्तान की ओर से नहीं मिलने के बाद वे एक सोची-समझी नीति के तहत यह वक्तव्य दिए। दरअसल प्रधानमंत्री की योजना गिलानी को मदहोसी का इंजेक्षन लगाने से था। क्योंकि वे जानते हैं कोई भी पाकिस्तान का प्रधानमंत्री पुरे होषोहवाष में भारत के साथ षांति बहाली का प्रयास नहीं कर सकता क्योंकि उसको अंजाम का भय सतायेगा। मनमोहन चाहते हैं कि गिलानी को मदहोषी का इंजेक्षन लगाकर वो काम करा लें जो अबतक उनके पूर्ववर्ती नहीं करा पाए हैं।
जैसा मुख वैसी बातें। आप भी विषेड्ढज्ञ हैं आप अपनी राय हमें लफुआ एट द रेट डॉट काम पर भेज दें आपकी बात मिर्च मसाला लगाकर प्रकाषित की जाएगी।

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

अमीर -गरीब की खाई को नेताजी देगें पाट

अमीर -गरीब की खाई को नेताजी देगें पाट

देश की जमापूंजी को  वे कर देगें बंदरबांट 

जनता के कल्याण के  लिए कर रहे हैं जातपात

मुस्लिम वर्ग के कल्याण के लिए

 सेकुलरवाद का कर रहे हैं हरदम जाप

उनकी दशा को देखकर बहा रहे हैं आंसू आठ

बटलाहाउस एनकाउंटर को वे कर रहे हैं  हरदम याद

रंग बदलने में तो  वे दे रहे हैं गिरगिट को भी मात

शनिवार, 14 जनवरी 2012

नेताजी का गुण गाता जा प्यारे


बेरोजगारी  का  भय नहीं सताएगा
नेताजी का गुण गाता जा प्यारे   
वे भवसागर पार लगायेंगे
तुम्हें  नोटों की गड्डी पर  सुलायेंगे 
तेरे दुःख दूर करने को घोटाला रचाएंगे
तिहाड़   में दिन बिताएंगे 
पैसा पानी की तरह बहायेंगे
तेरी किस्मत चमकायेंगे  
चुनाव जीतने पर क्षेत्र में झाँकने नहीं आएँगे 
पर  चमचों पर रहमत लुटाएँगे
तेरे माध्यम से वे  शासन को  चलाएंगे
उनकी  चुनावी नैया  पार लगाने को
तू दर- दर भटका जा प्यारे 
यहीं वह वक्त  है
तू बन  जा  नेताजी के आँखों का तारे  

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

कुशवाहा का हो रहा गृहप्रवेश है

मौकापरस्ती नहीं
ये पार्टी  विद डिफरेंस है
नया राष्ट्र बनाने का यहीं सेंस है
समय के साथ बदलता पार्टी का वेश है
बाबु सिंह कुशवाहा के प्रति
लोगों में बेवजह रोष है 
कुछ पार्टी नेताओं  में भी  जोश है 
क्योंकि उनको परिणाम का नहीं होश है 
विपक्षी पार्टियों के नैतिकता पर
 दिए प्रवचनों से वे मदहोश  हैं 
 उनमें कुछ आक्रोश  है 
लेकिन उत्तर प्रदेश में प्राप्त करना जनादेश है
इसलिए कुशवाहा का हो रहा गृहप्रवेश है 

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

लंका की हसीन षाम




काषी में अगर अस्सी की षाम प्रसिद्ध है तो लंका की षाम भी कम रंगीन नहीं है। जी हां यहां कि एक षाम के लिए लोग अपने जीवन तक को कुर्बान करने को तैयार रहते हैं। युवाओं में तो लंका की षाम का जादू सर चढ़कर बोलता हीं है। वृद्ध भी लंका भ्रमण के मोह को त्याग नहीं पाते। लंकेटिंग के षाम के षौकिन षहर के चाहे किसी भी भाग में हों षाम को लंका दर्षन के मोह को नहीं त्याग पाते हैं। यह भी देखा गया है कि लंकेटिंग के षौकिन पति या पत्नी अपने हमसफर को छोड़कर चुपके से लंका भ्रमण को निकल पड़ते हैं।
आपके मन में प्रष्न उठ सकता है कि आखिर ऐसा क्या है लंका की षाम में जो लोग इसके दीवाने होते हैं तो इसका उत्तर यह है यह अनुभव का विषय है षब्द उसकी महिमा को वर्णन करने में असमर्थ है, षब्द वहां के सौन्दर्य का वर्णन करने में असमर्थ है। लंका की दीवानगी लोगों में ऐसी होती है कि औरतें इसे अपना सौतन समझ बैठती है। मेरा तो यहां तक कहना है कि जिसने लंकेटिंग नहीं किया उसका जीवन व्यर्थ है। उसका दुनिया भर की टूर का कोई अर्थ नहीं।
जिसने लंकेटिंग नहीं किया वह लंकेटिंग के सुख को क्या जाने। वो क्या जाने लंका जाना गोवा के किसी पिकनिक स्पॉट जाने से कम नहीं है। वो क्या जाने कि यहां के षाम का दृष्य किसी हसीन वादियों से कम नहीं। मेरी तो इच्छा है कि जीवन की अंतीम सांस भी लंका पर किसी परी को निरेखते हुए गुजरे।
वैसे तो मुझे विष्वविद्यालय छोड़े एक दषक से काफी समय हो गया है लेकिन मन अभी भी लंका की वादियों में कहीं विचरण करता है। बिद्यार्थी जीवन में सड़कछाप कमेंट में जो आनंद था वह वीवी के प्याार में कहां। बीवी तो जमा धन है जबकि लंका पर भ्रमण करती नवयौवना बहता हुआ स्रोत है। जिसे देखकर हीं बंदा ओतप्रोत है।
दोस्तों के साथ सड़क छाप कमेंट छोड़ना किसी अलौकिक सुख से कम नहीं है। सीधे सपाट लोग इस सुख को क्या जाने। वे तो स्वच्छंदता के सुख को क्या जाने। वो तो अपना जीवन यहीं सोचने में गुजार देते हैं कि भला लोग क्या कहेंगंे या सोंचेंगे। मेरी सलाह माने तो चुपके से गंगा स्नान कर आएं वरना पछताने सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा। जीवन का असली सुख तो लोकलाज की परवाह नहीं करने वाला को मिलता है।
पढ़ाई के दिनों में मैं और मेरी मित्रमंडली लंकेटिंग की दीवानी थी। हमलोगों का लंका जाना दिनचर्या में षुमार था। किसी कारणवष अगर हमलोग लंका नहीं जा पाते तो सबकुछ खोया-खोया सा लगता था। लगता जैसे जीवन का कोई अर्थ नहीं था। जीवन में कोई रस हीं नहीं है रावण को भी षायद अपनी लंका उतनी प्यारी नहीं होगी जितना प्यार हमलोगों को अपनी लंका से था। लंकेटिंग के रूप में हमलोगों को जीवन का उद्देष्य मिल गया था। क्लास करने तो हमलोग मजबूरी में जाते थे लेकिन लंका में तो हमलोगों की जान बसती थी।
लंका के प्रति हमलोगों की दीवानीगी में हम लोगों का कोई हाथ नहीं था बल्कि लंका की वादियों का यह कमाल था। मैंने यह अनुभव किया कि महामना के इस तपोस्थली में प्रवेष लेते हीं छात्रों में अदम्य साहस, धैर्य एवं बल का उदय हो जाता है। वे अपने को तीसमार खां समझने लगते हैं। वे दूसरे लोक में विचरने लगते हैं। यह बात मैं अपने में आई अलौकिक षक्ति के आधार पर कह रहा हूं। कुछ में  सौन्दर्यबोध बढ़ जाता है। बालाओं को देखकर काव्य की धारा फूट पड़ती है। बहरे सुने मूक पूनी बोले वाली बात आ जाती है। ब्रॉन्डेड कपड़ों का महत्व समझ में आ जाता है।
यह भी समझ में आ जाता है कि पिताजी का बैंक बैलेंस लंकेटिंग के लिए किया था। आखिर माता-पिता को अपने पुत्र का सुख हीं तो सबसेे प्यारा है। पुत्र का अगर दिखावेपन में असली सुख पाता हो तो माता-पिता को क्यों आपत्ति होनी चाहिये। षायद यहीं कारण था कि पिताजी हमसबों को मुंह मांगी रकम भेंज रहे थे और हमलोग भेंजी हुई रकम को  ब्रांडेड कपड़ों पर खर्च कर रहे थे। ताकि हम लोगों की हैसियत कुछ ज्यादा दिखे और बालिकायें हमें प्यार भरी नजरों से निरेखें। दूसरी बात यह थी कि हम लोग पिताजी के इज्जत का ख्याल कर रहे थे। और नहीं चाहते कि उनका लाड़ला किसी से कम दिखे।  पिताजी ने कभी षहर नहीं देखे तो क्या हम लोग तो देखे हैं न। वे षहरों के रहन-सहन से परिचित नहीं थे तो क्या हुआ हमलोगों को तो षहरांे का रहन-सहन मालूम है न। जीवन बहुत कुछ नया हो रहा था नए मित्र बन रहे थे। नए गर्लफ्रेंड बन रही थी।  तब भी हमलोग पिताजी द्वारा बताये गये समय के महत्व को भूले नहीं थे। हमलोग समय के इतने पाबंद थे कि 6 बजे लंका पर जाने से कोई माई का लाल हमें नहीं रोक सकता था। बारीष तूफान एवं परीक्षा जैसी बाधायें हमारी रास्ता नहीं रोक पाती। या किसी परिचित की षादी- व्याह या बीमारी जैसी बाधा।
एक हसीन षाम जब हमलोग हॉस्टल से निकलकर
 पिया मिलन चौराहे से गुजर रहे थे। तभी देखते हैं कि कुछ हमारे सहपाठी पुलिसवालों के सामने उठक- बैठक कर रहे हैं। सहसा तो यह यकीन नहीं हुआ। लगा कि हमलोग सपना देख रहे हैं। क्योंकि ये वीर बहादुर तो ऐसा कर हीं नहीं सकते हैं। ये मर जाएंगे लेकिन किसी के सामने उठक-बैठक नहीं करेंगे।  मैं उनको बहादुर मानता था। क्योंकि उनकी बातों एवं हाव-भाव से ऐसा लगता कि वे वाकई मर्द हैं। वे मर मिंटेंगे लेकिन झूकेंगे नहीं। मुझे यह भी लगता कि देष में जब तक ऐसे रणवाकुरे रहेंगे देष को चीन एवं पाकिस्तान से डरने की आवष्यकता नहीं है। देष चीन की अतिक्रमण एवं पाकिस्तान के हरकतों को नजरअदंाज कर सकता है। मन में आया षायद इसी से भारत सरकार इन देषों के नापाक हरकतों को गंभीरता से नहीं लेती। क्योंकि ये रणवाकुरे जब चाहें उनकी नापाक हरकतों का मुंहतोड़ जबाब दे सकतें है। उनमें जवानी का जोष ऐसा था कि वे दीवाल ढाहते चलते। मतलब कि जब वे चल रहे हों और दीवाल सामने आ जाएगी तो वे उससे बचकर नहीं निकलेंगे बल्कि उसे अपने बाहुबल से गिरा देंगे। किसी रिक्षेवाले को मारे जोष के लतिया देंगे। आखिर वो जवानी -जवानी नहीं जिसकी कोई कहानी न हो। इन्हें देखकर मुझे समझ में आ गया था ऐसे हीं युवकों के चलते यह कहा जाता है कि किसी भी राष्ट के तरक्की का दायित्व युवकों के कंधों पर होता है। ऐसे जवानी का क्या अर्थ जो किसी पानवाले को हड़काया न हो किसी चायवाले को गरियाया न हो।
 ऐसी दषा में उन्हें देखा तो दिल को बड़ी राहत मिली कि आखिरकार उंट आया तो पहाड़ के नीचे। कमसे कम ये लोग तो हमलोगों के सामनें षेखी नहीं बघारेंगे। हमलोग का दिल इस कहानी को उपन्यास बनाने के लिए बैचैन हो उठा। मन किया कि लंकेटिंग के टूर को बीच में हीं स्थगित कर इस कहानी को मित्रों से षेयर करें। लेकिन विधाता को तो कुछ और मंजूर था। बस एक दुर्घटना ने सबकुछ बदलकर रख दिया। प्रिय मित्रों ने उठक-बैठक करते हुए हमलोगों की ओर कातर नजरों से देखना जारी रखा। बस क्या था हमलोगों को दया आ गयी और हमलोगों कैंपस प्रवेष कर गये। फिर क्या था पुलिस वाले उन्हें छोड़कर हमलोगों को उठक- बैठक कराने लगे।  और उठक-बैठक करने वाले प्यारे मित्र मुस्कुराने लगे और हम षर्माने लगे।
इस एक दुर्घाटना ने भविष्य में मिलने वाले सारे सुख पर पानी फेर दिया। कहा भी गया है कि सावधानी हटी की दुर्घटना घटी। हमलोगों को यह भी समझ में आ गया बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछताय। अगर हम लोग इस कहावत पर ध्यान दिए होते तो निंदा रस से मिलने वाले सुख से वंचित नहीं होते। आखिर जीवन का वास्तविक सुख दुसरे की निंदा में हींे तो छुपा हैै।
हमलोगों को इस कहानी को सुनाने के लिए मन में कचोट उठती लेकिन किस मंुह से यह कहानी दूसरों को सुनाते क्योंकि हमलोग स्वयं भी तो उठक-बैठक किये थे।
कहानी सुनाने का अवसर हाथ से नहीं लगने के बाद हमलोगों ने प्यारे मित्रों से उनकी कहानी सुनाना हीं बेहतर समझे कि क्यों उन्हें उठक-बैठक करनी पड़ी।
वे अपनी कहानी इस प्रकार सुनाये। उन्होंने कहा कि हमलोग हॉस्टल के कैंपस में प्रवेष कर अभी अपने प्रेमी युगलों के साथ जीने मरने की कसमें  खा हीं रहे थे कि पुलिस आ गयी। बस हमारी गर्लफ्रेंड हॉस्टल के कमरे में चली गई। और पुलिस वाले हमलोगों से उठक-बैठक कराने लगे।

शनिवार, 7 जनवरी 2012

संवैधानिक दर्जा देने की गीत गाया जाएगा

नए साल में सरकार नया संकल्प दोहरा रही है।
कि बजट सत्र में लोकपाल बिल लाया जाएगा
संवैधानिक दर्जा देने की गीत गाया जाएगा
दिग्गीराजा से प्रवचन कराया जाएगा
निगमानंदजी की याद दिलाया जाएगा
स्वामीजी को नेपथ्य से लाया जायागा
फिर उसको लटकाया जाएगा
किसी को बली को बकरा बनाया जाएगा
फूट डालो और राजकरो की नीति पर चला जाएगा
नाटक पर नाटक दिखलायागा
अन्ना को कसूरवार ठहराया जाएगा।
लोकतंत्र का मान बढ़ाया जाएगा



महंगाई के हलाहल पी जाएं।

नए साल के स्वागत में
आओ झूमें नाचे गाएं
ठर्रा पीकर सीवर के नाली में गिर जाएं
होष-हवाष गवाएं
महंगाई नजर न आए
लार टपकने न पाए
चाहे कोई कितना पकवान बनाए
चार्वाक के आदर्ष अपनाएं
ऋण लेकर मौज उड़ाएं
नए साल में आओ
षिव षंभू बन जाएं
महंगाई के हलाहल पी जाएं।

आओ नए वर्ड्ढ का स्वागत करें।

आओ नए वर्ड्ढ का स्वागत करें।
महंगाई का आदर करें
संस्कार का निरादर करें
संस्कृति का अनादर करें
जमाने के साथ कदम बढ़ाएं
 दारू पीकर बड़बडाएं
 लोकलाज को पैरों तलें कुचलें
कम कपड़े में जी भरके मचलें
नैतिकता को दरवाजा दिखलाएं
झूठ-फरेब को षिष्टाचार बनाएं

दंतहीन लोकपाल की भेंट।

गठबंधन के दौर में
सिद्धान्तों का चढ़ रहा भेंट
अपने स्वार्थ के खातीर
हर कोई कर रहा अपनी गोटी सेट
मौका हाथ नहीं मिलने वाले
लगा रहे आदर्षवाद की रेट
स्वहित के खातीर अन्ना जा रहे हैं
जंतर- मंतर पर लेट
वरना वे स्वीकारते
दंतहीन लोकपाल की भेंट।

नेताजी का जयमंत्र कल्याणकारक है

बेरोजगारी की बात करना नाहक है।
सरकार की अक्षमता की बात करना संहारक है।
रामलीला मैदान जैसा कष्टदायक है।
निगमानंद जैसा हश्रदायक है
नेताजी का जयमंत्र कल्याणकारक है
उनके गुणों का गुणगान करना फलदायक है।
उनकी परिक्रमा करना भवतारक है।
और विरोध करना मोक्षकारक है।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

नेताजी आराधना कर रहे हैं

नेताजी आराधना कर रहे हैं
अपनी जीत के लिए साधना कर रहे हैं
यूपी में त्रिषंकु विधानसभा की कामना कर रहे हैं
हसीन सपनों में कभी कभी गमन कर रहे हैं।
तिहाड़ की वादियों में भ्रमण कर रहे हैं।
एम्स के वीआईपी वार्ड में षयन कर रहे हैं।
किसी आदर्ष स्कैम का चयन कर रहे हैं।
मन हीं मन  फिर कुछ मनन कर रहे हैं
बस सफलता एक कदम दूर है
नैतिकता-वैतिकता की बात सोचना भूल है।
अपनी आत्मा को मारनेवाला हीं षूर-वीर है।
किसी को कुचल कर आगे बढ़ना हीं सफलता की मूल है।
और सब उलूल जुलूल है।
 फिर दूसरा दृष्य सामने आता है
जो नेताजी में आत्मविष्वास जगाता है
 फिर देख रहे हैं कि
वे नोटों की गड्डियों पर सो रहे हैं।
पांच सितारा होटलों में रह रहे हैं
दूर लखनऊ से रह रहे हैं।
कभी दूसरे सपने भी आते हैं
जो उनके मन को भाते हैं।
जैसे कि एकाएक उनका भाव सांतवे आसमान को छू रहा है।
विरोधी पार्टी का नेता उनका चरण छू रहा है
फिर नोटों की गड्डियों से उन्हें तौल रहा है।
लोकत्रंत्र का निरादर करने का अन्ना पर आरोप मढा जा रहा है।
फिर सदन के नेता द्वारा सदन में बताया जा रहा है।
 लोकतंत्र का मान माननीय सदस्यों द्वारा बढ़ाया जा रहा है
अन्ना को भ्रष्ट बताया जा रहा है।
लोकपाल का पलीता लगाया जा रहा है।
स्वामी अग्निवेष को नेपथ्य से सामने लाया जा रहा है।
सदस्यों को नोटों की गड्डियों से तौला जा रहा है।
सदस्यों को लोकपाल कि प्रतियां फाड़ने का बोला जा रहा है।
अपने पक्ष में लाने के लिए उन्हें पकवान खिलाया जा रहा है।
उनका गुण गाया जा रहा है
उन्हें पटाया जा रहा है।
बात नहीं मानने पर
इस दुनिया को छोडकर चले जाने को बोला जा रहा है।
फिर दूसरा दृष्य सामने आता है
 कि बहुमत के पक्ष में वोट करने के लिए
करोड़ो का पैकेज उन्हें दिया जा रहा है।
विपक्ष की नजर न लग जाए
इसलिए दूर कहीं हसीन वादियों में रखा जा रहा है।
 डायरेक्टर के इच्छाअनुसार पार्ट बजाने को कहा जा रहा है।
महामहीम के सामने परेड करने के लिए बोला जा रहा है।

सोमवार, 2 जनवरी 2012

लोक कल्याणकारी सरकार है



लोक कल्याणकारी सरकार है
थोक के भाव  उदार है
मंत्रीजी के रिष्तेदारों के लिए
बेरोजगारी की नहीं मार है
अवसर की भरमार है।
 आरक्षण षब्द बेकार है।
 खुला हर दरबार है।
बाकि लोगों में टैलेंट की दरकार है।
अंग्रेजी नहीं धाराप्रवाह है
पर्सनैल्टी एकदम बेकार है।
बंदा ठोकर खाने को लाचार है।
कोई न पूछनहार है।

रविवार, 1 जनवरी 2012

हास्य कविता

उत्तर प्रदेष में इन दिनों अजब-गजब नजारा दिखाया जा रहा है
कभी भिखारी कहकर जनता का मान बढाया जा रहा है
तो कभी त्वमेव माता चपिता त्वमेव गाया जा रहा है।
पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है।
जनता जर्नादन के चरणों में चढ़ाया जा रहा है।
  सदाव्रत खूब लुटाया जा रहा है।
रामराज्य की याद दिलाया जा रहा है।
धर्म एवं जाति का इंजेक्षन लगाया जा रहा है।
जनता को मदहोषी की अवस्था में लाया जा रहा है।
सबको समान रूप से लॉलीपाप दिया जा रहा है।
सामाजिक समरसता लाने के लिए जातिवाद किया जा रहा है।
मुस्लिम आरक्षण प्रावधान किया जा रहा है
 बांटो और राज करो के सिद्धान्त पर चला जा रहा है।
कुर्सी पाने के लिए सारे धर्मकर्म किया जा रहा है।
पुजारियों एवं मुल्लों से जीत का आर्षिवाद लिया जा रहा है।
जनता के दुखदर्द देखकर
नेताजी के आंखों से आंसुओं की धार बही जा रही है।
पांच साल सुध नहीं लेने के लिए पष्चाताप किया जा रहा है
चुनाव जीतने के बाद
क्षतिपूर्ति कर देने का आष्वासन दिया जा रहा है।
मलपूओं एवं मिष्ठानों का भोज खुब दिया जा रहा है।
रैलियों में भाग लेकर षहर घुमने का निमंत्रण दिया जा रहा है।
अपने नाम पर मुहर लगाने के लिए बताया जा रहा है।
पांच साल को नाकाफी बताया जा रहा है।
एकबार और मौका देने के लिए पटाया जा रहा है।
दीन-हीनों को गले से लगाया जा रहा है।
विरोधी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सताया जा रहा है।
चुनावी घोषणपत्र में किस्मत चमकाने के वादेे नेताजी द्वारा जनता से किया जा रहा है
और उसपर यकीन कर मुगेरीलाल के सपने जनता द्वारा बुना जा रहा है।